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________________ १७२ : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन ऋषभनाथ के १००८ नामों से स्तवन के प्रसंग में आये शिव के विभिन्न नामों का स्मरण प्रासंगिक है । आदिपुराण में ( २५.१००-२१७ ) ऋषभनाथ का शिव, शंकर, महादेव, हर, महेश्वर, त्रिपुरारि, नटेश आदि नामों से स्तवन शिव के स्पष्ट प्रभाव का संकेत देता है । ऋषभनाथ के गोमुख यक्ष के हाथों में परशु एवं पाश जैसे आयुधों का प्रदर्शन तथा वाहन रूप में वृषभ का निरूपण शिव के प्रभाव का साक्षी है । ५२ इसी प्रकार श्रेयांशनाथ के ईश्वर यक्ष का नाम, वृषभवाहन एवं उसका त्रिनेत्र होना भी शिव से ही प्रभावित है । 3 जैनधर्म में शिवलिंग की पूजा के सम्बन्ध में भी कथा वर्णित है । १४ महावीर के समय से ही जैनधर्म में स्कन्द व मुकुन्द की ही तरह शिव की पूजा का भी प्रचलन था । महावीर के समक्ष शूलपाणि५५ व्यन्तर देव द्वारा उपस्थित विभिन्न उपसर्ग इसका उदाहरण है । आदिपुराण में ऋषभनाथ के सन्दर्भ में शिव के त्रिपुरारि, त्रिलोचन, त्रिनेत्र, त्रयम्बक और त्रयक्ष नामों का भी उल्लेख हुआ है । ५६ एक अन्य स्थल पर उन्हें अर्धनारीश्वर और अधिकान्तक भी कहा गया है । ५७ उनके शिव, हर, शंकर, शम्भू" और अष्टमूर्ति नामों का भी उल्लेख है । रुद्र शिव के प्रचलित विशेषणों जैसे— पद्योजात, वामदेव, अघोर और ईशान का भी उल्लेख मिलता है । १९ पुष्पदन्त के महापुराण में इनका उल्लेख प्रचलित प्रतीकों व सहचरों जैसे – कंकाल, त्रिशूल, नरमुण्ड, सर्प और स्त्री के साथ हुआ है । ६° हेमचन्द्र ने इनका उल्लेख ईशान नाम से किया है । त्रिशूलधारी शिव के वाहन रूप में वृषभ का उल्लेख हुआ है। शिव को उमा व गंगा के साथ नृत्य व क्रीड़ा करते बताया गया है तथा शिव व पार्वती को नृत्य में सिद्धहस्त भी कहा गया है । १ पी० शाह ने जैन परम्परा के कपर्दी यक्ष को शिव से प्रभावित माना है जिनकी मूर्तियाँ शत्रुंजय पहाड़ी और विमलवसही से मिली हैं। इनके अतिरिक्त जैन मन्दिरों पर ब्राह्मण मन्दिरों के सदृश ही दक्षिणपूर्व दिशा के स्वामी (दिक्पाल ) के रूप में वृषभवाहन वाले तथा करों में त्रिशूल एवं सर्पादि से युक्त ईशान का निरूपण भी इस दृष्टि से ध्यातव्य है । यू० नारद : जैन पुराणों में ९ नारदों की परिकल्पना मिलती है जो ९ वासुदेवों के समकालीन रहे हैं। हरिवंशपुराण में भीम, महाभीम, रुद्र, महारुद्र, काल, महाकाल, चतुर्मुख, नरवक्त्र और उन्मुख नारदों का उल्लेख Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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