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१६२ : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन १८. य० पी० शाह, 'यक्षज वशिंप इन अर्ली जैन लिट्रेचर', पृ० ६०-६१;
जैन रूपमण्डन, पृ० २०८ । १९. अंतगड्दसाओ, पृ० १, पा० टि० २। २०. औपपातिक सूत्र २। २१. पिण्डनियुक्ति ५.२४५ । २२. पउमचरिय ६७.२८-४९ । २३. यू० पी० शाह, पू० नि०, पृ० ६१, २०८ । २४. भगवतीसूत्र १८.२६, १०.५ । २५. यू० पी० शाह, 'यक्षज वशिप इन अर्ली जैन लिट्रेचर', पृ० ६१-६२ । २६. मारुतिनन्दन तिवारी, पू० नि०, पृ० १५५ । २७. यू० पी० शाह, 'इन्ट्रोडक्शन ऑव शासनदेवताज इन जैन वशिप' ।।
___ प्रो० ट्रा० ओ० का०, २०वा अधिवेशन, भुवनेश्वर १९५९, पृ० १४७ । २८. तिलोयपण्णत्ति ४.९३४-९३६ । २९. प्रवचनसारोद्धार ३७५-७८ । ३०. यू० पी० शाह, जैन रूपमण्डन, पु० ५८ । ३१. यू०पी० शाह, पू० नि०, पृ० ५८ । ३२. यू० पी० शाह, 'इन्ट्रोडक्शन ऑव शासनदेवताज इन जैन वर्शिप,' प्रो०
ट्रा० ओ० का०, २०वा अधिवेशन १९५९, पृ० १४१-४३ । ३३. यू० पी० शाह, अकोटा बोन्जेज, बम्बई १९५९, पृ० २८-२९, फलक
१०-११। ३४, यू० पी० शाह, 'आइकनोग्राफी ऑव चक्रेश्वरी दि यक्षी आव ऋषभनाथ',
ज० ओ० इ०, खण्ड-२, अं० ३, पृ० ३०६ । ३५. मारुतिनन्दन तिवारी, पू० नि०, पृ० ३९, १५७ । ३६. वही, पृ० १५७। ३७. वही। ३८. वही। ३९. श्वेताम्बर परम्परा में ईश्वर और यक्षेश्वर तथा दिगम्बर परम्परा में केवल
यक्षेश्वर नाम से उल्लेख है। ४०. प्रवचनसारोद्धार में यक्ष का नाम वामन है। ४१. श्वेताम्बर ग्रन्थों में इसे काली भी कहा गया है । ४२. श्वेताम्बर ग्रन्थों में यक्षियों के नामों में भिन्नता है जबकि दिगम्बर ग्रन्थों
में इनके नामों में एकरूपता है ।
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