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पूर्वपीठिका : ३ महापुराण में २४ तीर्थंकरों के जीवन चरित के विस्तृत उल्लेख के सन्दर्भ में नेमिनाथ द्वारा विवाह पूर्व दीक्षा लेने तथा पार्श्वनाथ एवं महावीर की तपश्चर्या के समय उपस्थित किये गये उपसर्गों का विस्तृत उल्लेख हुआ है जिनके आधार पर विभिन्न स्थलों पर इन कथा प्रसंगों का विस्तृत अंकन किया गया । ऋषभनाथ के पुत्र भरत और बाहुबली के मध्य हए द्वन्द्व-युद्ध तथा युद्ध में विजयी होने के बाद बाहुबली द्वारा दीक्षा लेने और कठिन साधना और तपश्चर्या द्वारा केवल-ज्ञान प्राप्त करने तथा कठिन साधना के कारण ही तीर्थंकरों के समान प्रतिष्ठा प्राप्त करने के उल्लेख और उनके आधार पर मथुरा, देवगढ़, खजुराहो एवं एलोरा में बाहुबली की विपुल मूर्तियों का उल्लेख भी महत्त्वपूर्ण है । इन मूर्तियों में बाहुबली के शरीर से लिपटी लता-वल्लरि के अतिरिक्त वृश्चिक, छिपकली, सर्प एवं मृग जैसे जीव-जन्तु भी शरीर पर दिखाये गये हैं और तीर्थंकर मूर्तियों के समान उनके अष्ट-प्रातिहार्यों एवं कुछ उदाहरणों ( देवगढ़, खजुराहो ) में शासन-देवताओं के रूप में यक्ष-यक्षी युगल का भी उत्कीर्णन हुआ है।
महापुराण में आये विद्यादेवी के उल्लेख भी कालान्तर में उनके शिल्पांकन की दृष्टि से विशेष महत्त्वपूर्ण हैं । रामकथा एवं नेमिनाथ के साथ चचेरे भ्राताओं के रूप में बलराम और कृष्ण के उल्लेख ने खजुराहो ( पार्श्वनाथ मन्दिर ), देवगढ़ ( मन्दिर २ एवं मन्दिर १२ की चहारदीवारी ) तथा मथुरा में राम एवं नेमिनाथ के साथ बलराम-कृष्ण के निरूपण का आधार प्रस्तुत किया। जिनों के जन्म के पूर्व उनकी माताओं ने १६ मांगलिक स्वप्नों का दर्शन किया था जिनका खजुराहो एवं देवगढ़ के दिगम्बर मन्दिरों के प्रवेश-द्वारों पर पारम्परिक क्रम में अंकन हुआ है। ___ महापुराण में सरस्वती एवं लक्ष्मी के अतिरिक्त लोक परम्परा में मान्य श्री, धृति, बुद्धि, कीर्ति जैसी देवियों के उल्लेख भी महत्वपूर्ण हैं । साथ ही ब्राह्मण परम्परा के कई अन्य देवों की चर्चा, विशेषतः तीर्थंकर ऋषभनाथ के १००८ नामों से स्तवन के सन्दर्भ में शिव, ब्रह्मा एवं विष्णु के अनेक नामों के उल्लेख धार्मिक सामंजस्य की दृष्टि से अतीव महत्त्व के हैं। इन नामों में स्वयंभू, शम्भू, शंकर, जगन्नाथ, सद्योजात, लक्ष्मीपति, त्रिनेत्र, जितमन्मथ, त्रिपुरारि, त्रिलोचन, धाता, ब्रह्मा, शिव, ईशान, हिरण्यगर्भ, विश्वमूर्ति, भूतनाथ, विधाता, मृत्युंजय, पितामह, महेश्वर, .
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