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१४४ : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन ।
कलश, समुद्र, रत्नराशि और निर्धम अग्नि, क्रमशः इन चार और सात. शुभ स्वप्नों के देखने का उल्लेख मिलता है-त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र
४.१.१६९-२१५ । ५७. उत्तपुराण ५७.९०-९३ । ५८. उत्तरपुराण ५७.८७-९९ । ५९. उत्तरपुराण ५८.८३-८६, ९०-११९ । ६०. उत्तरपुराण ५९.७१-१०६ । ६१. उत्तरपुराण ६०.६३-६८ । ६२. नारद सम्बन्धी यह वर्णन श्वेताम्बर परम्परा में भी मिलता है
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र ४.४.१११-१९१ । ६३. उत्तरपुराण ६०.७१-८१ । ६४. श्वेताम्बर परम्परा में इनके शत्रु का नाम 'निशुम्भ है-त्रिषष्टि शलाका
पुरुषचरित्र ४.५.७२-७४ । ६५. उत्तरपुराण ६१, ६९-८३ । ६६. श्वेताम्बर परम्परा में 'निशम्भ' पाँचवें प्रतिवासुदेव के रूप में उल्लिखित
हैं-त्रिषष्टि शलाकापुरुषचरित्र ४.५.७२-७४ । ६७. उत्तरपुराण ६५.१७४-१९१ । ६८. श्वेताम्बर परम्परा में इनका नाम क्रमशः नन्दन, दत्त और प्रल्हाद है
त्रिषष्टि शलाकापुरुषचरित्र ६.५.१-२२ । ६९. उत्तरपुराण ६६.१०२-१२३ । । ७०. उत्तरपुराण ६७.८९ । ७१. पउमचरिय में राम का मुख्यतः पद्म और कहीं-कहीं राम ( ७८.३५,
४१, ४२), राघव (१.८२, ३९.१२६ ) एवं हलधर ( ३५.२२,
३९.२०, ३१) नामों से भी उल्लेख हुआ है। ७२. मारुतिनन्दन तिवारी, पू० नि०, पृ० ४१; 'ब्राह्मेनिकल डीटीज़ इन जैन
पैन्थीयान ऐण्ड रिलीजस आर्ट', सावनियर (आस्पेक्ट्स आव जैन फिलासफो ऐण्ड कल्चर), फोर्थ वर्ल्ड जैन कांग्रेस (सं० सतीश कुमार
जैन ), नई दिल्ली, १९८७, पृ० ३४-३७ । ७३. पउमचरिय ५.१४५-१५६; ८.२०; ९.८७-८९; १०.४६-४७, ५३;
७४. पउमचरिम ५९.८६, ७८. ४१; दोनों ही जैन परम्पराओं में हल और
मुसल का बलदेव के चार रत्नों में एवं चक्र व गदा का वासुदेव के सात रत्नों में उल्लेख आता है ।
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