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________________ १३६ : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन की हुई गरुडवाहिनी, सिंहवाहिनी, बन्धमोचीनी एवं हननवरणी नामक विद्याएँ दीं।८ रावण से युद्ध करने के लिये राम और लक्ष्मण की चतुरंगी सेना ने प्रस्थान किया। दोनों भाईयों ने प्रज्ञप्ति नामक विद्या द्वारा अनेक विमानों का निर्माण कर उसके द्वारा अपनी सेना को लंका में उतारा। राम और लक्ष्मण अंजन पर्वत और विजय पर्वत नामक हाथी पर आरूढ़ थे। लक्ष्मण के ध्वज पर वलयाकार साँप को पकड़े हुए गरुड का चिह्न अंकित था।९ रावण का भाई विभीषण जिसे रावण ने देश निकाला दे दिया था, रामचन्द्र के पास आकर रहने लगा था। लंका पहुँचने पर राम को जब इन्द्रजीत ( रावण का पुत्र ) द्वारा राक्षस आदि महाविद्याओं के सिद्ध करने के बारे में पता चला तो उन्होंने उसमें अनेक विद्याधर कुमारों द्वारा विघ्न डलवाना आरम्भ किया। फलस्वरूप इन्द्रजीत ने अनेक विद्याधर राजाओं और सिद्ध किये हुए देवताओं को इनसे युद्ध करने के लिये कहा । किन्तु उनके अस्वीकार कर देने पर रावण स्वयं राम व लक्ष्मण से युद्ध करने चल पड़ा।९० राम के साथ बहुत दिनों तक युद्ध करने के बाद रावण मायावी युद्ध करने के उद्देश्य से अपने पुत्रों के साथ आकाश में पहुँचा। रावण को दुरीक्ष्य ( जो देखा न जा सके ) देखकर चतुर राम और लक्ष्मण भी सिंहवाहिनी व गरुडवाहिनी विद्याओं से निर्मित सिंह और गरुड पर सवार हो आकाश में पहुँचे । युद्ध में रावण को परास्त होता देख, पुत्र इन्द्रजीत आया जिसे राम ने शक्ति की चोट से गिरा दिया। यह देख रावण ने लक्ष्मण पर चक्ररत्न फेंकने का आदेश दिया किन्तु वह चक्र लक्ष्मण के चारों ओर प्रदक्षिणा कर दाहिने हाथ पर स्थिर हो गया। अन्त में उसी चक्ररत्न से लक्ष्मण ने रावण का सर काट दिया और रावण अधोगति ( नरकगति) को प्राप्त हुआ। राम व लक्ष्मण आठवें बलभद्र और नारायण होकर तीन खण्ड के बलशाली स्वामी हुए।१ रावण का वध करने के बाद राम और लक्ष्मण ने सोलह हजार पट्टबन्ध राजाओं, एक सौ दस नारियों के स्वामी विद्याधरों तथा तीन खण्ड के निवासी देवों को जीतकर बयालीस वर्षों में दिग्विजय पूर्ण किया। राम और लक्ष्मण, सीता के साथ अयोध्या आये जहाँ तीर्थजल मे भरे एक हजार आठ कलशों से उनका अभिषेक किया गया । राम के अपराजित हलायुध, अमोघबाग, कोमुदो गदा ओर रत्ना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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