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________________ १३४ : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन इस सन्दर्भ में अपने मन्त्रियों और पुरोहितों से परामर्श करने पर महाराज दशरथ को राम और लक्ष्मण के क्रमशः आठवें बलभद्र और नारायण होने का भी पता लगा । फलस्वरूप दशरथ ने राम और लक्ष्मण को सेना के साथ जनक के पास मिथिला भेज दिया। यज्ञ पूर्ण होने के बाद जनक ने राम को बड़े वैभव के साथ सीता प्रदान की। कुछ दिन वहीं व्यतीत करने के बाद राम, लक्ष्मण और सीता के साथ अयोध्या लौट आये और सुख पूर्वक रहने लगे । बाद में राजा दशरथ ने अन्य सात सुन्दर कन्याओं के साथ राम का तथा पृथ्वी देवी आदि सोलह राजकन्याओं के साथ लक्ष्मण का विवाह किया।' राम-लक्ष्मण के बहुपत्नीक होने का सन्दर्भ जैन परम्परा का निजत्व है। इस समय रावण, जो उनका शत्रु था और जिसका उल्लेख इनके प्रतिनारायण अथवा प्रतिवासुदेव के रूप में हुआ है, का जन्म लंका के विद्याधर राजा पुलस्त्य के यहाँ हुआ। इनकी माता का नाम मेघश्री था। एक बार क्रीड़ा के लिये किसी वन में गये हुए रावण ने अमितवेग की पुत्री मणिमती को विद्या सिद्ध करने में संलग्न देखा और उस पर मोहित हो उसे अपने अधीन करने के उद्देश्य से उसकी विद्या का हरण कर लिया। फलस्वरूप उसने भविष्य में रावण की ही पुत्री होकर उसके वध करने का निश्चय किया।२ आगे चलकर रावण की पत्नी मन्दोदरी के गर्भ से उसका जन्म हुआ। जब रावण को निमित्त ज्ञानियों से इस बात का पता चला कि इसी पुत्री द्वारा उसका विनाश होगा तो उसने मारीच नामक मन्त्री को उसे कहीं ले जाकर छोड़ आने को कहा । किन्तु मारीच ने मन्दोदरी के कहने पर उस कन्या को एक पेटिका में रखकर मिथिला नगरी के उद्यान के निकट भूमि के भीतर रख दिया। वहाँ पर हल चला रहे कुछ लोगों को जब वह पेटिका मिली तो उन्होंने इसकी सूचना राजा जनक को दी। जनक ने उस कन्या का नाम 'सीता' रखकर उसका पालन-पोषण किया। 3 यह सब इतना गुप्त रखा गया कि रावण को भी इस बात का पता न चला। एक दिन नारद द्वारा सीता के सौन्दर्य के बारे में सुनकर उसका हरण करने के उद्देश्य से रावण पुष्पक विमान में बैठ चित्रकूट वन में पहुँचा, जहाँ राम-सीता के साथ भ्रमण कर रहे थे। वहीं पर रावण की आज्ञा से मारीच श्रेष्ठ मणियुक्त मायावी हिरण के बच्चे का रूप धर कर सीता के सन्मुख प्रकट हुआ। सीता को उस पर मोहित होता देख उसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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