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________________ I: कलापरक अध्ययन हुआ है।४७ इस प्रकार जैन परम्परा में ९ प्रतिवासुदेवों को शलाकापुरुषों की सूची में बाद में सम्मिलित किया गया ।४८ दोनों ही जैन परम्पराओं में प्रतिवासुदेवों की सूची समान है जिसमें अश्वग्रीव, तारक, मेरक, मधुकैटभ, निशुम्भ, बलि, प्रह्लाद, रावण और जरासन्ध के नामोल्लेख हैं ।४९ उत्तरपुराण में इनके नामों में किंचित् परिवर्तन मिलता है जिसमें अश्वग्रीव, तारक, मधु, मधुसुदन, मधुक्रीड़, निशुम्भ, बलीन्द्र, रावण व जरासन्ध का उल्लेख हुआ है।५० आरम्भिक आठ प्रतिवासुदेवों को विद्याधर एवं नौवें को पृथ्वी का मनुष्य बताया गता है।५१ सभी प्रतिवासुदेव अपने उस चक्र से मारे गये जिसे उन्होंने वासुदेव को मारने के उद्देश्य से फेंका था ।५२ ___ ब्राह्मण पुराणों में इन प्रतिवासुदेवों का उल्लेख राक्षस अथवा असुर रूप में मिलता है। इसमें तारक, कुमार अथवा कात्तिकेय द्वारा मारा गया। मधु, बलि, रावण अथवा जरासन्ध देवताओं और मनुष्यों के प्रतिद्वन्द्वी थे जो सदैव विष्णु के विभिन्न अवतार स्वरूपों यथा राम, कृष्ण, विष्ण और वामन द्वारा मारे गये। जैन परम्परा में प्रह्लाद का उल्लेख वासुदेव के शत्रु के रूप में हुआ है जबकि ब्राह्मण परम्परा में उन्हें एक महान सन्त और भागवत सम्प्रदाय के प्रथम उपासक के रूप में स्वीकार किया गया है ।५3 जैन मन्दिरों में बलदेवों अथवा वासुदेवों की प्रतिमाओं के पूजन का कोई उल्लेख नहीं मिलता है, किन्तु कहीं-कहीं उनके जीवन से सम्बन्धित घटनाओं का अंकन उपलब्ध है।५४ यहाँ ९ बलभद्रों, नारायणों एवं प्रतिनारायणों का एक साथ कुछ विस्तार से उल्लेख भी अपेक्षित है : १. विजय, त्रिपृष्ठ और अश्वग्रोव : विजय, त्रिपृष्ठ ओर अश्वग्रीव जैन परम्परा के प्रथम बलभद्र ( या बलदेव ), नारायण (या वासूदेव) और प्रतिनारायण (या प्रतिवासूदेव) हैं जो ग्यारहवें तीर्थंकर 'श्रेयांसनाथ' के समकालीन थे। इनके पूर्वभवों का उल्लेख जैन पुराणों में मिलता है। संक्षेप में इनका जीवनवृत्त निम्न प्रकार है प्रथम बलभद्र 'विजय' का जन्म भरतक्षेत्र के पोदनपुर नामक नगर के राजा प्रजापति की जयावती नामक महारानी के गर्भ से हुआ था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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