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________________ प्रथम अध्याय पूर्वपीठिका २४ तीर्थंकरों या जिनों की कल्पना जैनधर्म की धुरी है जिन्हें देवाधिदेव भी कहा गया है। वीतरागी जिनों को गहन साधना और त्याग की प्रतिमूर्ति माना गया है। जैन मान्यता के अनुसार कालचक्र के प्रत्येक अवसर्पिणी और उत्सपिणी युगों में २४ जिन हुए जिनके उपदेशों (धर्मदेशना) को जिनवाणी कहा गया है। जिनवाणी और तद्नुरूप जैन साहित्य के भी कथा, गणित, दर्शन और चारित्र्य सम्बन्धी साहित्य के रूप में चार विभाग किये गये हैं। इन विभागों में कथा साहित्य को सर्वाधिक महत्व दिया गया है क्योंकि विभिन्न कथाओं के माध्यम से सामान्य जनता में धर्म को सरलता से और विस्तृत पैमाने पर स्वीकृत और लोकप्रिय बनाया जा सकता था। यह सर्वथा निविवाद है कि कथा किसी भी बात को रोचक बनाने और सरलता से लोकमानस की स्वीकृत पाने का सामर्थ्य रखती है। जैनपुराण साहित्य वस्तुतः कथा साहित्य या कथानुयोग का एक प्रमुख अंग है।' आदिपुराण के कर्ता जिनसेन ने आदिपुराण में स्पष्ट उल्लेख किया है कि जो प्राचीन था वही पुराण है 'पुरातनं पुराणं स्यात् । ___पुराणों की रचना ब्राह्मण एवं जैन दोनों धर्मों में प्रचुर संख्या में की गयी। ये पुराण वस्तुतः भारतीय संस्कृति के विश्वकोश हैं जिनमें विभिन्न कथाओं के माध्यम से धार्मिक जीवन के विविध पक्षों के साथ ही सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और कलापरक विषयों की विस्तारपूर्वक चर्चा मिलती है। श्वेताम्बर परम्परा में ऐसे ग्रन्थों को चरित या चरित्र तथा दिगम्बर परम्परा में पुराण कहा गया है । लगभग पाँचवीं शती ई० से १०वीं शती ई० के मध्य विभिन्न प्रारम्भिक जैनपुराणों को रचना की गयी जिनमें प्राकृत पउमचरिय (विमलसूरिकृत४७३ ई०), पद्मपुराण ( रविष्णकृत-६७८ ई० ), हरिवंशपुराण (जिनसेनकृत-७८३ ई० ), संस्कृत महापुराण (जिनसेन एवं गुणभद्रकृत-९वीं१०वीं शती ई० ) तथा अपभ्रंश महापुराण (पुष्पदन्तकृत-ल० ९६० ई०) विशेषतः उल्लेखनीय हैं। प्रारम्भिक जैनपुराणों में लोकमानस में प्रतिष्ठित राम और कृष्ण से सम्बन्धित रामायण और महाभारत जैसे ब्राह्मण महाकाव्यों के अनु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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