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________________ ११० : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन १३. इस ग्रन्थ में १९वें जिन मल्लिनाथ को नारी रूप में निरूपित किया गया है। यह परम्परा केवल श्वेताम्बरों में ही मान्य है, क्योंकि दिगम्बर परम्परा में नारी को केवलज्ञान प्राप्ति की अधिकारिणो नहीं माना गया है, इसी कारण मल्लिनाथ को नारी तीर्थकर नहीं बताया गया है । एम० विण्टरनित्ज, 'ए हिस्ट्री ऑव इण्डियन लिट्रेचर, खण्ड-२, कलकत्ता १९३३, पृ० ४४७-४८। १४. कल्पसूत्र १-१८३, २०४-२७ । “१५. आदिपुराण प्रास्ताविक से उद्धृत, पृ० ३ । १६. आर० सी० शर्मा, 'आर्ट डेटा इन रायपसेणिय', सं० पु. ५०, अं० ९, पृ० ३८। १७. पउमचरिय ११.२-३; २८.३८-३९; ३३.८९ । -१८. ऋषभ सदैव लटकती केशावलि से शोभित है (कल्पसत्र १९५) । तीन उदाहरणों में मूर्ति लेखों में 'ऋषभ' नाम भी उत्कीर्ण है। १९. राज्य संग्रहालय, कलकत्ता-जे १९; एक मूर्ति का उल्लेख यू० पी० शाह ने भी किया है, सं० पु० १०, अं० ९, पृ० ६ । २०. राज्य संग्रहालय. लखनऊ-जे० २० । २१. राज्य संग्रहालय, लखनऊ-जे०८ - २२. पार्श्व सप्त सर्पफणों के छत्र से युक्त हैं ( पउमचरिय १.६ ) । २३. पीठिका लेखों में 'वर्धमान' नाम से युक्त ६ महावीर मूर्तियां राज्य संग्रहालय, लखनऊ में संकलित हैं। २४. भगवतीसूत्र १६.५; २०.८, ५८-५९ । २५. वहीं, पृ० ८३ । . २६. मारुतिनन्दन तिवारी, जैन प्रतिमाविज्ञान, पृ० ५०.५१; आर० पी० चन्दा, 'जैन रिमेन्स ऐट राजगिर', आ० स० ई० ऐ० रि०, १९२५-२६; पृ० १२५-२६ । २७. मारुतिनन्दन तिवारी, जैन प्रतिमाविज्ञान, पृ० ३८ - २८. तिलोयपण्णत्ति ४.६०४-६०५ । २९. प्रवचनसारोद्धार ३८१-८२ । - ३०. इसके पूर्व केवल आवश्यक नियुक्ति में हो ऋषभ के शरीर पर वृषभ चिह्न का उल्लेख है-यू० पी० शाह, 'बिगिनिंग्स ऑव जैन आइकनो ग्राफी', सं० पु० ५०, अं० ९, पृ० ६। --३१. यू० पी० शाह, जैन रूपमण्डन, पृ० ८४; मारुतिनन्दन तिवारी, पू० नि०, पृ० २५४-५५; हस्तीमल, पू० नि०, पृ० ५६७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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