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________________ तीर्थकर (या जिन) : ९३ अंकन हुआ है। स्मरणीय है कि मुनिसुव्रत के समकालीन राम और लक्ष्मण रहे हैं जबकि बलराम और कृष्ण परवर्ती २२वें तीर्थंकर नेमिनाथ के समकालीन थे ।२०९ आश्चर्य है कि एलोरा में मुनिसुव्रत की एक भी मूर्ति नहीं बनी। २१. नमिनाथ : २१वें तीर्थंकर नमिनाथ का जन्म मिथिला नगरी के वृषभदेव के वंशज, काश्यपगोत्री राजा विजय महाराज के यहाँ हुआ था। इनकी माता का नाम वप्पिला था। जन्म के छह माह पूर्व से देवों ने इनके आँगन में रत्नवृष्टि द्वारा इनकी पूजा की व श्री, ह्री तथा धृति आदि देवियों ने विभिन्न प्रकार से इनकी सेवा की। इन्होंने भी अन्य जिन माताओं की तरह सोलह शुभ स्वप्न देखे थे। आषाढ़ कृष्ण दशमी के दिन स्वाति नक्षत्र में इन्होंने जिन बालक को जन्म दिया जिसका देवों ने जन्मकल्याणक उत्सव किया तथा उनका नाम 'नमिनाथ' रखा ।२१० श्वेताम्बर परम्परा में उल्लेख है कि गर्भावस्था में जब शत्रुओं ने मिथिला नगरी को घेर लिया था, तब राजप्रसाद की छत से जाकर उन शत्रुओं की ओर इनकी माता द्वारा सौम्य दृष्टि से देखने पर शत्रु राजा का मन बदल गया और वह महाराज विजय के चरणों में जाकर झुक गया। उसके इस अप्रत्याशित नमन के कारण ही बालक का नाम 'नमिनाथ' रखा गया ।११ इनकी आयु दस हजार वर्ष व शरीर पन्द्रह धनुष ऊँचा था। कुमारकाल के ढाई हजार वर्ष व्यतीत होने पर उन्हें राज्य पद प्राप्त हुआ और राज्य करते हुए जब पाँच हजार वर्ष बीत गये तब एक दिन वन में विहार के लिये गये नमिनाथ को, आकाश मार्ग से दर्शनार्थ आये दो देवकुमारों से, अपने तीर्थंकर होने के बारे में पता चला और उसी समय उन्हें संसार से विरक्ति हो गयी। तदनन्तर नमि सुपुत्र नामक पुत्र को राज्य सौंप कर चैत्रवन नामक उद्यान में एक हजार राजाओं के साथ उन्होंने दीक्षा धारण की । छद्मस्थ अवस्था में नव वर्ष व्यतीत हो जाने पर मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन बकुल वृक्ष के नीचे इन्हें केवलज्ञान की प्राप्ति हुई। तदनन्तर धर्म का उपदेश देते और विहार करते हुए जब उनकी वायु का एक माह शेष रह गया तब उन्होंने एक हजार मुनियों के साथ सम्मेदशिखर पर जाकर प्रतिमा योग धारण कर मोक्ष प्राप्त किया।२१२ नमिनाथ की केवल कुछ ही मूर्तियाँ कुम्भारियाँ, लूगवसही, पटना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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