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अध्याय ८ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म का मूल्यां
कन एवं योगदान
४६१-४७६
(अ) भौगोलिक परिप्रेक्ष्य का प्रभाव ४६१ ( ब ) जैन संस्कृति के आधारभूत स्तम्भ ४६४ (१) जैनाचार्य या श्रमण वर्ग ४६४ (२) श्रेष्ठी वर्ग ४६५ (३) मन्दिर एवं आश्रय ४६५ ( स ) राजस्थान में जैन धर्म के योगदान का स्वरूप ४६६ (१) नैतिक मूल्यों की स्थापना ४६६ (२) अहिंसा का दर्शन ४६६ (३) लोकोपकारी प्रवृत्तियों को प्रोत्साहन ४६७ ( ४ ) सात्त्विक जीवन की प्रेरणा ४६८ (५) सर्वधर्म एवं प्राणी समभाव ४६८ (६) संघशक्ति एवं एकता को प्रोत्साहन ४६९ (७) सैनिक, प्रशासनिक एवं राजनीतिक क्षेत्र ४६९ (८) आर्थिक उन्नयन में योगदान ४७० (९) शैक्षिक एवं बौद्धिक उन्नयन में योगदान ४७३ (१०) साहित्य सृजन में योगदान ४७३ (११) साहित्य संरक्षण में योगदान ४७४ (१२) इतिहास सृजन में सहायक ४७४ (१३) जैन जातियों का उद्गम स्थल ४७५ (१४) स्थापत्य कला में योगदान ४७५ (१४) मूर्तिकला में योगदान ४७६ (१५) चित्रकला में योगदान ४७६ | सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
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