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समाधिमरण
आदि के कार्यों का विवरण, पंचमहाव्रत, परिषहसहन ८ एवं इस मरण के महत्त्व९ पर प्रकाश डाला गया है। इसके साथ-साथ ज्ञान के महत्त्व१०° एवं अशाश्वत सुख १ आदि का भी वर्णन किया गया है।
इसमें अभ्यद्यतमरण के तीन भेद-भक्तप्रत्याख्यानमरण, इंगिनीमरण तथा प्रायोपगमनमरण का उल्लेख है। भक्तप्रत्याख्यानमरण के दो भेद-सविचार एवं अविचार का भी वर्णन मिलता है। भक्तप्रत्याख्यानमरण का विस्तारपूर्वक विवेचन करते हुए इसकी महत्ता पर भी प्रकश डाला गया है। इसमें लिखा है कि व्यक्ति साधनाक्रम के अनुसार ही फल पाता है, यथा१०२ - जघन्य साधक सौधर्म देवलोक को प्राप्त करता है, उत्कृष्ट साधक अच्युत कल्प में उत्पन्न होता है तथा श्रमण मोक्ष प्राप्त करता है। संस्तारक प्रकीर्णक
संथारगपइण्णय या संस्तारक प्रकीर्णक में १२२ गाथाएँ हैं। इसकी सभी गाथाएँ समाधिमरण की साधना का उल्लेख करती हैं।
इस प्रकीर्णक में समाधिमरण का स्वरूप१०३, उसके लाभ एवं सुख ०४, समाधिमरण लेनेवाले व्यक्तियों के उदाहरण.५, संथारे पर आरूढ़ व्यक्ति के मन में उठनेवाले भावों ०६ का सुन्दर चित्रण किया गया है।समाधिमरण को सर्वश्रेष्ठ व्रत कहा गया है तथा इसकी तुलना संसार की सर्वश्रेष्ठ वस्तुओं के साथ की गयी है। उदाहरणस्वरूप- जिस तरह पर्वतों में श्रेष्ठ मेरु पर्वत, तारों में श्रेष्ठ चन्द्र, समुद्रों में स्वयंभूरमण (समुद्र विशेष) है उसी प्रकार सभी व्रतों में सर्वश्रेष्ठ समाधिमरण व्रत है।१०७
. इसमें उन महान आत्माओं का भी वर्णन है, जिन्होंने समाधिमरणपूर्वक अपना देहत्याग किया था। उनमें प्रमुख हैं- अर्णिकापुत्र १०८, गजसुकोमल ऋषि:०९, अवन्ति ५", चाणक्य५११, अमृतघोष १२, चिलातिपुत्र १२ आदि। भगवती आराधना
भगवती आराधना को "मूलाराधना" भी कहा जाता है। इसके रचयिता आचार्य शिवार्य हैं। इसमें कुल गाथाओं की संख्या २१६४ है। समाधिमरण पर लिखा गया यह सबसे बड़ा ग्रन्थ है।
इसमें आराधना, मरण के विविध प्रकार, समाधिमरण एवं उसके तीन भेदों भक्तप्रत्याख्यानमरण, इंगिनीमरण, प्रायोपगमनमरण, बारह अनुप्रेक्षाएँ तथा समाधिमरण
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