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समाधिमरण
में डूबकर ऊँचाई से कूदकर, आग में जलकर, अन्न-जल का त्याग करके ।
धर्मशास्त्र के इतिहास में प्रो० काणे ने अलबरूनी के ग्रन्थ जिसकी रचना १०३० ई० में हुई थी, से भी आत्मबलिदान के धार्मिक उदाहरणों को स्पष्ट किया है। उनके अनुसार धार्मिक आत्महत्या तभी की जाती थी जबकि व्यक्ति अपने जीवन से थक जाता था, जीवन भारस्वरूप लगने लगता था । अपरिहार्य शारीरिक दोष, असाध्य रोग, वृद्धावस्था, अत्यधिक दुर्बलता आदि की स्थिति में ही आत्ममरण किया जाता था। जाति प्रथा इन्होंने कहा है कि उपर्युक्त विधि से आत्ममरण वैश्य या शूद्र जाति के लोग किया करते थे। ब्राह्मण और क्षत्रिय भी इन अवस्थाओं में आत्ममरण करते थे, लेकिन उनके लिए अलग व्यवस्था थी। उनके आत्ममरण करने का समय नियत रहता था। उस नियत समय पर वे कुछ लोगों को धन देते थे और यही धन लेनेवाले लोग आत्ममरण करनेवाले व्यक्ति को गंगा की धारा में फेंक देते थे। इस प्रकार ब्राह्मण और क्षत्रिय जाति के लोग गंगा-जल में समाधि लेकर प्राणों का त्याग करते थे। *
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प्रसिद्ध गुप्तकालीन ग्रन्थ मृच्छकटिक एवं रघुवंश ने भी आत्ममरण का समर्थन किया है। मृच्छकटिक के अनुसार राजा शुद्रक ने अग्नि प्रवेश करके इच्छापूर्वक आत्ममरण किया था।६५ रघुवंश में अज के आत्ममरण का विवरण काव्य रूप में प्रस्तुत किया गया है। इस ग्रन्थ के अनुसार अज जब वृद्ध हो गए और असाध्य बीमारी से ग्रसित हो गए तब उन्होंने गंगा और सरयू की पवित्र जलधारा में जलसमाधि लेकर आत्ममरण ग्रहण किया। ६६ कुमारगुप्त ४१४ ई. में गुप्त साम्राज्य के राजा बने। इन्होंने भी अग्निप्रवेश करके इच्छापूर्वक मृत्यु ग्रहण किया था। ६ आठवीं सदी के महान दार्शनिक कुमारिल ने भी अग्नि प्रवेश करके इच्छापूर्वक मृत्युवरण किया था । ६८ दसवीं या ग्यारहवीं सदी में काबुल और लाहौर के राजा जयपाल थे। उन्होंने भी अग्नि प्रवेश करके इच्छापूर्वक मृत्यु का वरण किया था। दसवीं सदी में राजा गांगेय ने अपनी १०० पत्नियों के साथ प्रयाग में जलसमाधि लेकर इच्छापूर्वक मृत्यु का वरण किया था। दसवीं शताब्दी में चन्देल राजा धंगदेव ने भी इच्छापूर्वक मृत्यु का वरण किया था। जब धंगदेव की उम्र १०० साल से अधिक हो गयी तब वे प्रयाग चले आए थे और यहाँ संगम की जलधारा में रुद्र का ध्यान करते हुए जलसमाधि ले लिया था। १ चन्देल राजा धंगदेव के मन्त्री अनन्त ने भी प्रयाग में इच्छितमरण किया था । इसी प्रकार राष्ट्रकूट राजा ध्रुव ने प्रयाग में गंगा-यमुना के संगम स्थल पर इच्छितमरण किया था। ३ चालुक्य नरेश अमाभल्ल सोमेश्वर ने भी असाध्य रोग से पीड़ित होने पर तुगभद्रा नदी की जलधारा में डूबकर इच्छितमरण किया था।
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