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को सम्पन्न किया, एतदर्थ में इन सबके प्रति अपना आभार व्यक्त करती हूँ।
अन्त में मैं उन सभी संस्थाओं एवं महानुभावों के प्रति भी हृदय से कृतज्ञ हूँ जिनका योगदान प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इस ग्रन्थ के प्रणयन में प्राप्त हुआ है। संवत्सरी महापर्व
साध्वी प्रियदर्शना ३० अगस्त, १९९५
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