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________________ २२४ : आचाराङ्ग का नीतिशास्त्रीय अध्ययन नष्ट करने वाली है। अतः साधु-साध्वी को संखडि में नहीं जाना चाहिए। ७८ मुनि को स्वाद लोलुपता के वशीभूत होकर भी संखडि में जाने के लिये किसी तरह का छल कपट नहीं करना चाहिये।७९ आचारांग में, उस युग में विभिन्न अवसरों पर होने वाली सामिष और निरामिष संखडियों का उल्लेख है। नयी वधु के घर में प्रवेश करने के अवसर पर, वधू के जाने के अवसर पर या मृतक के निमित्त, यज्ञादि की यात्रा के निमित्त होने वाली या मित्र-परिजनों के सम्मानार्थ तैयार की जाने वाली संखड़ियों से अन्य लोगों को भोजन ले जाते हुए देखकर संयमी साधु को वहाँ भिक्षा हेतु नहीं जाना चाहिए, क्योंकि वहाँ जाने से अनेक दोष लग सकते हैं-यथा-मार्ग में बहुत से प्राणी, बीज, हरियालो, ओसकण, पानी, सूक्ष्म निगोदादि के जीव, पंचवर्ण, फल, आर्द्र मिट्टी, जाले होने से उनकी विराधना होगी तथा स्वाध्याय में भी बाधा उत्पन्न होगी। इस प्रकार जिन संखडियों में शाक्यादि भिक्षुगण आदि का जनसमूह एकत्र हो रहा हो उनमें प्रज्ञावान मुनि को भिक्षार्थ नहीं जाना चाहिए। । उक्त प्रकार संखडियों में जाने से यदि मार्ग में किसी तरह की विराधना को सम्भावना न हो और यहाँ बहुत से शाक्यादि मिक्षु नहीं आएँगे, जन-समूह भी कम एकत्र हो रहा है या भीड़ भी ज्यादा नहीं है तथा स्वाध्याय में भी कोई बाधा नहीं आ सकती है ऐसा जानकर मुनि उक्त संखडियों में आ सकता है। आचारांग वृत्तिकार ने भी आपवादिक स्थिति में उक्त संखडियों में जाने और भिक्षा ग्रहण करने को कहा है। इसी तरह, उत्तराध्ययन २, बृहत्कल्प 3 और निशोथसूत्र में भी संखडि" में जाने का निषेध किया है। बाहर जाते समय की मर्यादा : आहार, शौच, स्वाध्याय के लिए अपने स्थान से बाहर जाते समय तथा विहार करते समय मुनि को अपने सभी धर्मोपकरण साथ लेकर जाना चाहिए । यही बात वस्त्रैषणा और पात्रैषणा के सम्बन्ध में भी है। बृहदेशव्यापो वारिश हो रही हो, कुहरा छाया हो, आँधी चल रही हो तथा असंख्य त्रस जीव इधर-उधर उड़ एवं गिर रहे हों तो साधुसाध्वी को आहारादि के लिए बाहर नहीं जाना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002111
Book TitleAcharanga ka Nitishastriya Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Research, & Ethics
File Size13 MB
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