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[ ३५ ] भ्रष्ट रूप में प्रस्तुत किया है कि उससे न केवल उनका व्यक्तित्व धूमिल होता है, अपितु वे जन साधारण की अश्रद्धा का कारण बनते हैं ।
धूर्ताख्यान के माध्यम से हरिभद्र ऐसे अतर्कसंगत अंधविश्वासों से जन-साधारण को मुक्त करना चाहते हैं जिनमें उसके आराध्य और उपास्य देवों को चरित्रहीन के रूप में प्रस्तुत किया गया है। उदाहरण के रूप में चन्द्र, सूर्य, इन्द्र, वायु, अग्नि और धर्म का कुमारी एवं बाद में पाण्डु पत्नी कुन्ती से यौन सम्बन्ध स्थापित कर पुत्र उत्पन्न करना, गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या से इन्द्र द्वारा अनैतिक रूप से यौन सम्बन्ध स्थापित करना, लोकव्यापी विष्णु का कामी-जनों के समान गोपियों के लिए उद्विग्न होना आदि कथानक इन देवों की गरिमा को खण्डित करते हैं। इसी प्रकार हनुमान का अपनी पूंछ से लंका घेर लेना अथवा पूरे पर्वत को उठा लाना, सूर्य और अग्नि के साथ सम्भोग करके कुन्ती का न जलना, गंगा का शिव की जटा में समा जाना, द्रोणाचार्य का द्रोण से, कर्ण का कान से, कीचक का बांस की नली से एवं रक्त कुण्डलिन् का रक्त बिन्दु से जन्म लेना, अण्डे से जगत् की उत्पत्ति शिवलिंग का विष्णु द्वारा अन्त न पाना, किन्तु उसी लिंग का पार्वती की योनि में समा जाना, जटायु के शरीर को पहाड़ के समान मानना, रावण द्वारा अपने सिरों को काटकर महादेव को अर्पण करना और उनका पुनः जुड़ जाना, बलराम का माया द्वारा गर्भ परिवर्तन, बालक श्री कृष्ण के पेट में समग्र विश्व का समा जाना, अगस्त्य द्वारा समुद्र पान और जह्वाण के द्वारा गंगापान करना, कृष्ण द्वारा गोवर्धन उठा लेना आदि पुराणों में वणित अनेक घटनाएं या तो उन महान् पुरुषों के व्यक्तित्व को धूमिल करती हैं या आत्म विरोधी हैं अथवा फिर अविश्वसनीय हैं । यद्यपि यह विचारणीय है कि महावीर के गर्भ-परिवर्तन की घटना, जो कि निश्चित ही हरिभद्र के पूर्व पूर्णतः मान्य हो चुकी थी, को स्वीकार करके भी हरिभद्र बलराम के गर्भपरिवर्तन को कैसे अविश्वसनीय कह सकते हैं । यहाँ यह भी स्मरणीय है कि हरिभद्र धूर्ताख्यान में एक धूर्त द्वारा अपने जीवन में घटित अविश्वसनीय घटनाओं का उल्लेख करवा कर फिर दूसरे धूर्त से यह कहलवा देते हैं कि यदि भारत, रामायण
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