SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (35) चिड़ी कमेड़ी कागला, रात चुगन नहिं जाय। नरदेहधारी मानवा, रात पड्या क्यूँ खाय।। रात में फिरे और खावे, मनुज वे निशिचर कहलाते। निशाचर रावण के भाई, नहीं रघुवर के अनुयायी।। आज हमें जैनत्व की मूल व प्रथम पहचान को वापस दृढ़ता से पालन करना व कराना अत्यन्त आवश्यक है। कई भाई-बहन तर्क देते हैं कि कार्य की व्यस्तता व महानगरों में दूरियों के कारण रात्रिभोजन त्याग नहीं निभ सकता, लेकिन अगर गंभीरता से मानसिकता बनायें तो जैसे विदेशी भाई अपनी पानी की बोतल साथ रखते हैं, हम यात्रा में अपना भोजन साथ रखते हैं ठीक इसी प्रकार दूर जाने वाले व कामकाजी भाई-बहिनों को शाम का भोजन अपने साथ ले जाना चाहिये। आजकल तो ऐसे साधन उपलब्ध हैं जिससे लम्बे समय तक भोजन गर्म व ताजा बना रह सकता है। कई भाई-बहन रात्रिभोजन का त्याग तो करते हैं, लेकिन कुछ दिन छूट रखते हैं तथा उन दिनों का उपयोग सामूहिक भोज में करते हैं, यह बिल्कुल अनुचित है। इससे हमारी नकलकर दूसरे भी रात के भोजन के लिये प्रेरित होते हैं। हमें चाहिये कि सामूहिक भोज में तो किसी भी मूल्य पर रात को भोजन नहीं करें, ताकि दूसरों पर गलत छाप नहीं पड़े व जैनत्व बदनाम न हो। __रात्रिभोजन से जाने-अनजाने शरीर में धीरे-धीरे रोग प्रवेश करने लगते हैं एवं रोगों से जूझने की प्रतिरोधात्मक शक्ति का भी धीरे-धीरे ह्रास होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002109
Book TitleRatribhojan Tyag Avashyak Kyo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSthitpragyashreeji
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2009
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Literature, & Paryushan
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy