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महासती सीता भी उनके साथ थी। दक्षिण में भ्रमण करते-करते कुबेरनगरी में पहुँचे। वहाँ के राजा ने उन सबका आदर-सत्कार किया और अपनी पुत्री वनमाला का विवाह लक्ष्मण के साथ किया। फिर लक्ष्मण राम के साथ आगे बढ़े और वनमाला को पिता के घर ही रहना पड़ा। तब वनमाला ने लक्ष्मण को वापस लौटने की कसम खाने के लिये कहा। तब लक्ष्मण ने प्रण लिया- 'यदि रामचन्दजी को उनके इष्ट स्थान पर छोड़कर वापस न लौटूं तो मुझे पाँच पापों के सेवन का पाप लगे और ऐसे पापी की जो गति होती है, वह गति मेरी हो' पर वनमाला को इससे संतोष नहीं हुआ। उसने कहा - कि अगर “रात्रिभोजन का पाप लगे" ऐसा कहे तो मैं जाने की आज्ञा देती हूँ अन्यथा नहीं। तब उन्हें आगे बढ़ने की इजाजत दी। यहाँ पर समझने की बात यह है कि प्राणातिपात आदि पापों से जो दुर्गति होती है उससे भी रात्रिभोजन के पाप से बहुत भयंकर दुर्गति होती है।
रात्रि के दोषों को जानकर जो भव्यात्मा सूर्योदय और सूर्यास्त की दो-दो घड़ी छोड़कर भोजन करते हैं (सूर्योदय के बाद दो घड़ी और सूर्यास्त के पहले दो घड़ी छोड़कर) वे पुण्यशाली हैं।२८ __रात में अक्सर उल्लू, चमगादड़, शेर, चीता, बिल्ली, भेड़िया आदि हिंसक प्राणी आहार करते हैं। रात का भोजन मानवीय भोजन नहीं कहा जा सकता है, क्या हम पक्षियों के स्तर से भी नीचे गिर गये हैं ? हमारे पूर्वाचार्यों ने सदैव रात्रिभोजन का प्रवचनों, रचनाओं आदि के माध्यम से पूर्ण विरोध किया है। ऐसा भी सुनने को मिलता है कि रात्रिभोजी माँसाहारी तुल्य पापी है। पूर्वाचार्यों ने कहा भी है -
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