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भारतीय आयुर्वेद का अभिमत है कि “शरीर में दो मुख्य कमल होते हैं - १. हृदयकमल और २. नाभिकमल। सूर्यास्त हो जाने पर ये दोनों कमल संकुचित हो जाते है, अतः रात्रिभोजन निषिद्ध है। इस निषेध का तीसरा कारण यह भी है कि रात्रि में पर्याप्त प्रकाश न होने से छोटे-छोटे जीव भी खाने में आ जाते हैं।२५
जिस प्रकार सूर्य का प्रकाश पाकर कमलदल खिल जाते हैं तथा उसके अस्त होते ही सिकुड़ जाते हैं, उसी प्रकार जब तक सूर्य का प्रकाश रहता है, तब तक उसमें रहने वाली सूर्य किरणों के प्रभाव से हमारा पाचन-तंत्र ठीक काम करता है, उसके अस्त होते ही उसकी गतिविधि मंद पड़ जाती है, जिससे अनेक रोगों की संभावनाएँ बढ़ जाती है। अतः रात्रिभोजन करना किसी भी स्थिति में हितकर नहीं है।
रात्रि में भोजन करने से विश्राम में बाधा उपस्थित होती है। हम समझते हैं कि गले के नीचे भोजन उतर जाने से समस्या का समाधान हो गया अर्थात् खाने का समाधान हो गया। पर भोजन करने में जितना श्रम होता है उससे अधिक श्रम भोजन के पाचन में होता है। शरीर-यन्त्र भोजन-पाचन में लग जाता है; जिसके कारण शरीर को बाहर से नहीं, अन्दर से श्रम करना पड़ता है। जो लोग रात्रि में भोजन करते हैं उन्हें जैसी चाहिए वैसी गहरी निद्रा नहीं आती। या तो रात्रि में इधर-उधर करवटें बदलते रहते हैं या स्वप्न संसार में गोते लगाते हैं। निद्रा की इस अस्त-व्यस्तता
और अराजकता का मूल कारण पेट में पड़ा हुआ आहार है। जो रात्रि में भोजन नहीं करते हैं उनकी पाचन क्रिया ठीक रहती है और वे जब प्रात: उठते हैं उस समय उनके चेहरे पर तरोताजगी
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