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का परीक्षण विद्युत प्रकाश में नहीं होता, उसका परीक्षण तो सूर्य की रोशनी में ही होता है। सूर्य की रोशनी में ही कमल विकसित होते हैं, विद्युत प्रकाश में नहीं। सूर्योदय होते ही प्राणवायु की मात्रा बढ़ जाती है। प्राणवायु श्रम करने के लिए आवश्यक है। रात्रि में प्राणवायु की मात्रा कम हो जाती है और कार्बन-डाइ-आक्साइड की मात्रा बढ़ती है जिसके कारण पेड़-पौधों को लाभ मिलता है, पर मानवों को उससे लाभ नहीं मिलता। जैसे रात्रि होने पर कमल के फूल सिकुड़ने लगते हैं वैसे ही रात्रि में मानव का पाचन संस्थान भी सिकुड़ने लगता है। पाचन के लिए प्राणवायु आवश्यक है। कार्बन-डाइ-आक्साइड के कारण पाचन कार्य में कठिनता होती है।
इसके अतिरिक्त अब तो वैज्ञानिक खोजों से स्पष्टतः निश्चित हो गया है कि सूर्य किरणों में Infra-red तथा Ultra-violet दो प्रकार की किरणें होती हैं। इनमें से एक प्रकार की किरणें वातावरण में उपस्थित सूक्ष्म जीव राशि का विनाश करती हैं, यह लाभ रात्रि के समय नहीं मिल पाता। अत: वैज्ञानिक दृष्टि से भी रात्रिभोजन उचित नहीं है।३४
जहाँ तक धर्म की बात है, वहाँ रात्रिभोजन को हिंसा आदि कारणों से निषिद्ध बताया है। चिकित्सा शास्त्रियों का अभिमत है कि कम से कम सोने के तीन घंटे पूर्व तक भोजन अवश्य कर लेना चाहिये। जो लोग रात्रिभोजन करते हैं, वे भोजन के तुरन्त बाद सो जाते हैं, जिससे उनके शरीर में अनेक रोगों का जन्म होता है। दूसरी बात यह है कि सूर्यप्रकाश में केवल प्रकाश ही नहीं होता, अपितु जीवनदायिनी शक्ति भी होती है। सूर्यप्रकाश से हमारे पाचन तंत्र का गहरा सम्बन्ध है।
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