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________________ ( 18 ) प्रकाश में स्वयं अनेक प्रकार के सूक्ष्म जीव आकर्षित होकर आ जाते हैं, जो भोजन में अपने आप गिरते रहते हैं। अनेक जीव , तो इतने सूक्ष्म होते हैं तथा उनका रंग भोज्य पदार्थ के रंग का ही होने से पता भी नहीं चलता और वे हमारे खाद्य-पदार्थों में मिलकर अनचाहे ही हमारे पेट में चले जाते हैं, पेट इन जीवों का कब्रिस्तान बन जाता है। दूसरा दोष यह है कि रात्रिभोजी क्रूर, हिंसक, कठोर एवं निष्ठुर परिणामी होने लगता है। उसके हृदय से करुणा, दया, मैत्री आदि की भावनाएँ विलीन होने लगती हैं। वह स्वर्ग-नरक, पुण्यपाप आदि का निषेध करने लगता है। जिनवाणी के प्रति रही हुई आस्था एवं श्रद्धा मंद होने लगती है। जो लोग रात्रि को भोजन करने वाले हैं। उनके लिये अक्सर रात को भोजन बनता है। रात में गैस चूल्हों में छिपे जन्तु अकारण ही मर जाते हैं। आजकल यह तर्क दिया जाता है कि बिजली के प्रकाश से दिन की तरह प्रकाश हो जाता है, अतः जीव जन्तु आसानी से दिखाई देते हैं। वास्तव में देखा जाये तो अनेक जीव-जन्तु जो दिन में निष्क्रिय रहते हैं वे रात में सक्रिय होते हैं तथा अनेक जीव-जन्तु विद्युत, दीपक आदि के प्रकाश के कारण ही पैदा होते हैं। इस तरह रात को भोजन बनाने एवं करने के कारण अनेक निरपराध जीव काल ग्रास हो जाते हैं। इस प्रकार रात्रिभोजन करने से स्पष्टत: हिंसा का पाप लगता है। यह बात जानने जैसी है कि मर्यादित काल के बाद खाद्य पदार्थों में अक्सर खाद्य सामग्री के रंग के ही कीटाणु उत्पन्न हो जाते हैं, उन्हें रात में देखना व उनसे रात में बचना बड़ा कठिन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002109
Book TitleRatribhojan Tyag Avashyak Kyo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSthitpragyashreeji
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2009
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Literature, & Paryushan
File Size3 MB
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