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यौगिक विकास की दृष्टि से निषेध
आचार्य हेमचन्द्र ने योगशास्त्र में योग-साधना की दृष्टि से रात्रिभोजन का निषेध किया है। यौगिक क्रिया करने वाले साधकों ने मानव के शरीर के विभिन्न अंगों को कमल की उपमा दी है, जैसे मुखकमल, नेत्रकमल, हृदयकमल, नाभिकमल, चरणकमल आदि। इस प्रकार हमारे शरीर रूपी सरोवर में चारों ओर कमल ही कमल हैं। जिस तरह कमल सूर्योदय होने पर खिलते हैं व सूर्यास्त होने पर मुरझा जाते हैं उसी तरह हमारे शरीर रूपी सरोवर में स्थित सभी कमल सूर्योदय के साथ सक्रिय होते हैं व सूर्यास्त के साथ उनकी सक्रियता निर्बल हो जाती है। अतः जब कमल सक्रिय हो उस समय किया गया भोजन ही सुपाच्यकर होता है साथ ही बलवर्धक एवं शक्तिकारक भी होता है। तब ऐसी स्थिति में की गई योग-साधना सिद्धिफल को प्रदान करने वाली होती है।
ध्यान-साधना करने के लिए तन और मन दोनों ही शांत और स्वस्थ होने चाहिए। रात्रिभोजन का त्याग आमाशय और पाचनतंत्र को हल्का रखता है, जिससे मस्तिष्क भारमुक्त रहता है। जबकि रात्रिभोजन से वायु दोष, अजीर्ण, अपच आदि होने की अधिक संभावना रहती है। फलस्वरूप योग आदि में मन जुड़ना मुश्किल होता है।
अहिंसा लाभ की दृष्टि से निषेध यदि अहिंसा की दृष्टि से विचार करते हैं तो रात्रिभोजन अनावश्यक जीव हिंसा का कारण प्रतीत होता है। पहला दोष यह है कि अंधकार में भोजन किया ही नहीं जा सकता, उसके लिए दीपक, मोमबत्ती या बिजली का प्रकाश करना ही पड़ता है। उस
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