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और भी जरूरी है। क्षुधापूर्ति तो पशु-पक्षी भी करते हैं; परंतु एक निश्चित विधान के अंतर्गत। पक्षी रात्रि में भोजन नहीं करते, पशु क्षुधा न होने पर न तो शिकार करता है और न ही भोजन। तब मानव ही क्यों समयकुसमय, भक्ष्य-अभक्ष्य का विचार किये बिना खाद्य-अखाद्य वस्तुओं को ग्रहण करता जाता है। यह चिंतन का विषय है। प्रस्तुत पुस्तक के माध्यम से जन-चेतना को जागृत कर उसे सात्विक जीवन जीने की कला सिखाने का साध्वीश्री का यह प्रयास निश्चय ही सराहनीय है। प्राणी मात्र को क्षुधा शांत करने हेतु सात्विक भोजन दिन में ही ग्रहण करना उचित है, जिससे इस जीवन में तन-मन-धन का लाभ हो तथा धर्माराधन द्वारा पुण्य संचय करके आवागमन के चक्र से मुक्त हो मोक्ष को वरा जा सके।
शान्ति दूगड़ विभागाध्यक्ष, समाजशास्त्र विभाग, खुनखुनजी गर्ल्स पी.जी. कालेज
लखनऊ
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