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अमृत स्वर “रात्रिभोजन त्याग आवश्यक क्यों है?" अहिंसा के पालनार्थ या परम्परा के अनुगमन हेतु। क्या रात्रिभोजन निषेध भौतिक, धार्मिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से आवश्यक है? यदि हाँ, तो महावीर के अनुयायियों एवं समस्त प्राणियों से मेरा विनम्र निवेदन है कि अभी भी समय है चेतो, जागो और प्रण करो 'रात्रिभोजन न करने की।'
पूर्व भवों में किये गये पुण्य कर्मों के प्रभाव से देव-दुर्लभ नर तन पाकर यदि आवागमन के चक्र से मुक्ति पानी है, तो जीवन में पाप कर्मों का संचय क्यों? समस्त जीव योनियों में श्रेष्ठ नर योनि पाकर भी पाप मार्ग का अवलम्बन क्यों? जैन धर्म के अनुयायी होकर भी तीर्थंकर भगवान के बताये रास्ते से विमुखता क्यों? जैन एवं अहिंसक प्रायः समनार्थी हैं। रात्रि में सूक्ष्म जीव कीट-पतंगें, मक्खी, मच्छर कृत्रिम प्रकाश में अधिक आते हैं, फिर रात्रिभोजन के प्रति आसक्ति क्यों? यह विचारणीय विषय है।
त्याग-तप-संयम के श्रमण पथ पर दृढ़तापूर्वक आगे बढ़ते हुए आहार संबंधी नियमों एवं निषेधों की विवेचना इस पुस्तक का प्रतिपाद्य विषय है। निश्चय ही यह पुस्तक पूज्या स्थितप्रज्ञा श्रीजी म. सा. के इस विषय पर गहन अध्ययन एवं चिंतन मनन का परिचायक है। यह पुस्तक जैन अजैन समस्त प्राणियों के लिये पठनीय है। ___ जीवित रहने के लिये आहार लेना आवश्यक है, परंतु कब, कैसा और कितनी मात्रा में आहार लेना आवश्यक है- यह नियत करना तो
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