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________________ ( xii ) अविस्मरणीय रहेगी। जिनशासन परम्परा का अविच्छिन्न पर्वाधिराज पर्युषण पर्व पर पूज्या साध्वीद्वय के सान्निध्य ने इसकी महत्ता को और भी बढ़ा दिया। इस पर्व में अनेक प्रकार की प्रतियोगिताएँ आयोजितकी गईं। पर्युषण पर्व के पश्चात् राजुल एवं नेमिनाथ भगवान् की भव्य प्रस्तुति ने लोगों का मन मोह लिया। लोगों को २२वें तीर्थंकर प्रभु नेमिनाथ के जीवन चरित्र को निकट से देखने एवं समझने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। युगप्रधान चारों दादा गुरुदेव की जयंतियाँ भी बड़े ही भावोल्लास व धूमधाम से मनायी गयीं। यूं तो नियमित पूजा होती रहती थी लेकिन साध्वीद्वय की तेजस्वी वाणी का ऐसा प्रभाव था कि इन कार्यक्रमों में जन सैलाब उमड़ आता था । चातुर्मास के सभी प्रसंगों पर नजर डालें तो एक दिव्य सवेरा नजर आता है, जो कभी प्रेम के फूलों की तरह, कभी करुणा के झरनों की तरह तो कभी ज्ञान का आलोक विखेरता नजर आता है। चातुर्मास के ये क्षण लखनऊ वासियों के भविष्य को उतना ही प्रेममय, करुणामय, अहिंसामय और साधनामय बनाते रहेंगे। जिनशासन समर्पित अनिल जी एवं कर्तव्यनिष्ठा अंजना जी जड़िया ने इस पुस्तक को प्रकाशित करने का आग्रह किया । इनकी इस भावना की अंतःकरण से अनुमोदना करते हैं। प. पू. स्थितप्रज्ञाजी म. सा. ने रात्रिभोजन त्याग के सम्बन्ध में अपने विचार जिस ढंग से प्रस्तुत किये हैं वे निश्चित रूप से जनमानस को जागृत करने में सहायक होंगे। आज पूरा विश्व आकांक्षाओं की दौड़ में अविश्रांत भागा जा रहा है। वर्तमान विषमताओं और समस्याओं में घिरा जकड़ा जा रहा है। परिग्रह और शोषण अपनी चरम सीमा पर है, किन्तु विचारों की विषमता, व्यवहार व आचरण की विषमता, अनेक मत-मतांतरों की विषमता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002109
Book TitleRatribhojan Tyag Avashyak Kyo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSthitpragyashreeji
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2009
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Literature, & Paryushan
File Size3 MB
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