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पूर्वस्वर नवाबों की नगरी लखनऊ वासियों के परम सौभाग्य एवं पुण्य कर्मों का साक्षात् प्रमाण सन् २००७ में देखने को मिला, जब श्री संघ की प्रबल भावना एवं पूर्ण समर्पिता अंजना जी जड़िया के अथक प्रयासों से ३५ वर्षों के लंबे अंतराल के बाद जैन शासन की अनुपम थाती, आगमज्योति प्रवर्तिनी महोदया पूज्या सज्जन श्रीजी म.सा.की विदुषी शिष्या प्रवचन प्रभाविका, तप-जप साधिका पूज्या शशिप्रभा श्रीजी म.सा. की निश्रावर्तिनी सहज स्वभावी प.पू. स्थितप्रज्ञा श्रीजी म.सा. एवं सरलमना प.पू. सिद्धप्रज्ञा श्रीजी म.सा. के चातुर्मास से यह धरती पावन बनी।
३५ वर्षों पूर्व इसी लखनऊ नगरी में आशु कवयित्री पूज्या सज्जनश्री जी म.सा., पूज्या शशिप्रभा श्रीजी म.सा. आदि म.सा. का चातुर्मास शांतिनाथ मंदिर, सुरंगी टोला चौक में हुआ। इतने लम्बे अंतराल के पश्चात् जन-जन में एक नया आलोक एवं चेतना को जागृत करने का जो महान कार्य उन्हीं की दो शिष्याओं के द्वारा किया गया वह अतुलनीय एवं प्रशंसनीय है।
प.पू. स्थितप्रज्ञा श्रीजी म.सा. की दीक्षा के १४ वर्षों के पश्चात् प्रथम चातुर्मास के प्रथम दिन से ही सरल सहज मार्मिक एवं हृदय की गहराइयों को छू लेने वाले प्रवचनों का ऐसा नजारा दिखा कि लोगों में जमीकंद त्याग, रात्रिभोजन त्याग एवं अध्यात्म की भावना उमड़ने लगी। ____ चातुर्मास काल में हुई नौ, आठ, तेले की तपस्या एवं नवपद जी की सामूहिक ८१ आयंबिल आराधना लखनऊ के इतिहास में
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