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________________ १० ३०. श्री यशोविजय जैन ग्रन्थमाला ४ द्वितीय आवृत्ति, वी० सं० २४३७ / ईस्वी १९१०, पृ० ४. " मानतुंगाचार्य और उनके स्तोत्र ३१. इस ग्रन्थ के सम्बन्ध में हमने कुछ उल्लेख ही देखा है, मूल ग्रन्थ प्राप्त नहीं हो सका । ३२. कापड़िया, जैन संस्कृत साहित्यनो इतिहास, भाग २, सूरत १९६८, पृ० ३१६. ३३. ज्योतिप्रसाद, “प्रस्तावना", सचित्र भक्तामर०, पृ० २६. ३४. कापड़िया, भक्तामर, प्रस्तावना (गुजराती), पृ० १४. ३५. ज्योतिप्रसाद, सचित्र भक्तामर०, पृ० २६. ३६. कटारिया, “भक्तामर स्तोत्र", जैन निबन्ध०, पृ० ३४२. ३७. काव्यमाला, सप्तम गुच्छक, पृ० १ २, टिप्पणी. ३८. निर्ग्रन्थ दर्शन में कषायों को क्षीण करके, सकल कर्मों से विमुक्त होने से, मोक्ष प्राप्त होता है ऐसी दृढ़ सैद्धान्तिक मान्यता है । मन्त्र - तन्त्रादि में 'आलम्भ' या 'आरम्भ' (हिंसायुक्त) प्रवृत्ति, तदुपरान्त राग, द्वेष, मोहादि में गर्त होने के अलावा इनमें आध्यात्मिक दृष्टि से तो कोइ उपलब्धि संभव नहीं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002107
Book TitleMantungacharya aur unke Stotra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Jitendra B Shah
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year1999
Total Pages154
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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