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________________ प्रकाशकीय जैन धर्म में भक्तामर स्तोत्र अत्यन्त प्रचलित है । जैनों के सभी संप्रदाय समान रूप से इस स्तोत्र को स्वीकार करते हैं एवं पाठ-स्मरण करते हैं । स्तोत्र की भाषा, शैली, भाव आदि उत्तम प्रकार के हैं । यही कारण है कि जैन धर्म में यह स्तोत्र सर्वजनमान्य हुआ । भक्तामर स्तोत्र पर अब तक अनेक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं और अनेक विद्वानों ने इस स्तोत्र पर अनुसंधानात्मक अध्ययन भी किया है, तथापि निष्पक्ष एवं सर्वांगीण विचार प्रायः अभी तक नहीं हुआ था ! इस कमी को पूरी करने का प्रयास इस पुस्तक में किया गया है । प्रस्तुत पुस्तक में भक्तामर स्तोत्र का आंतरदर्शन, पद्यसंख्या, कर्ता, कर्ता का संप्रदाय, समय, अष्टमहाभय, एवं कर्ता की एक अन्य कृति भयहरस्तोत्र आदि विषयों पर सप्रमाण, सयुक्तिक एवं सोदाहरण चिंतन किया गया है । अतः प्रस्तुत ग्रन्थ का प्रकाशन कर विद्वज्जगत् को समर्पित करते हुए हमें अपार हर्ष हो रहा है । __ भक्तामर स्तोत्र का संपादन एवं उस पर विस्तृत खोजपूर्ण विवेचन प्रा० मधुसूदन ढांकी [शोध निदेशक, अमेरिकन इन्स्टिट्यूट ऑफ इन्डियन स्टडीज, गुडगाँव] एवं डा० जितेन्द्र शाह [अवैतनिक निदेशक, शारदाबेन चिमनभाई एज्युकेशनल रिसर्च सेन्टर, अहमदाबाद] ने किया है । प्रा० ढांकी स्थापत्य एवं कला के मूर्धन्य विद्वान् होने के साथ-साथ जैन ऐतिहासिक शोध में भी निष्णात हैं । डा० जितेन्द्र शाह, जैन धर्म और दर्शन के युवा विद्वान एवं चिंतक हैं। दोनों ने उपलब्ध सभी प्रमाणों एवं विवेचनों के आधार पर समीक्षात्मक अन्वेषण करके प्रस्तुत ग्रन्थ तैयार किया है । प्रस्तुत ग्रन्थ तैयार कर प्रकाशनार्थ संस्थान को दिया गया; अतः संस्थान इन दोनों विद्वानों का आभारी है । जैनदर्शन के अद्वितीय विद्वान्, महामनीषी पं० दलसुखभाई मालवणियाजी ने पुरोवचन लिखकर हमारे उत्साह में अभिवृद्धि की है; अतः हम आपके प्रति हृदय से आभार ज्ञापित करते हैं । आगम एवं दर्शन के ख्यातनाम विद्वान्, डा० जगदीशचंद्रजी ने भी संपादकों के अनुरोध से पूर्वावलोकन लिखने का कष्ट किया; अतः हम आपके विशेष आभारी हैं । (दुर्भाग्यवश वह यह ग्रन्थ पूर्णरूप से प्रकाशित हो जाय तत् पूर्व विदा ले चुके हैं ।) ग्रन्थ की प्रथमावृत्ति के प्रकाशन में नारणपुरा स्थित आदिनाथ जैन श्वे० मूर्तिपूजक संघ ने आर्थिक सहयोग प्रदान किया था, हम उक्त संघ एवं संघ के संचालकों के आभारी हैं। ग्रन्थ के लॅसर अक्षरांकन में रमेशभाई पटेल ने उत्साहपूर्वक सहयोग दिया है, एतदर्थ उन्हें हम सहृदय साधुवाद देते हैं। आशा है, यह ग्रन्थ शोधात्मक एवं तुलनात्मक अध्ययन कर रहे अध्येताओं एवं जिज्ञासुओं के लिए उपयुक्त सिद्ध होगा। 'दर्शन', शाहीबाग. अजय चिमनभाई अहमदाबाद - ३८०००४ _ (अध्यक्ष) १४-०७-१९९३. शारदाबेन चिमनभाई एज्युकेशनल रसर्च सेन्टर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002107
Book TitleMantungacharya aur unke Stotra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Jitendra B Shah
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year1999
Total Pages154
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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