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________________ । ७२ ] विशेष- आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि उपर्युक्त तीनों दिगम्बर ग्रंथों में कुमार अवस्था का तात्पर्य राजा नहीं बनना हो सिद्ध होता है क्योंकि इन तीनों ग्रन्थों में अगले चरण में कहा गया है कि शेष ने राज्य किया । जबकि श्वे० परम्परा व ग्रन्थ आवश्यकनियुक्ति में अगली गाथा का पाठ 'इत्थिभिसेया' माने तो कुमार का अर्थ अविवाहित अधिक संगत लगता है । इस प्रकार मूल ग्रंथ उनकी अपनी परम्परागत मान्यताओं से भिन्न बात कहते हैं । ५४. समणस्स णं भगवओ महावीरस्स भज्जा 'जसोया' कोडिण्णागोतेण । - आचारांग (मधुकर मुनि) २।१५।७४४ ५५. चउपन्न महापुरिसचरियं २६१ ५६. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र ९३ ५७. सिरिपासणाहचरियं ३।१६२-६३ ५८. पासणाहचरिउ (पद्मकीर्ति ) सन्धि ११-१२ ५९. चउपन्नमहापुरिसचरियं २६२ द्रष्टव्य -- कमठ सम्बन्धी घटना के साहित्यिक साक्ष्य ८वीं - ९वीं शताब्दी के पूर्व के नहीं है - जबकि मूर्तिकला में पार्श्व के उपसर्गों का चित्रण छठीं शताब्दी से मिलने लगता है - यद्यपि वे नागोद्धार की घटना के प्रबल साक्ष्य नहीं माने जा सकते हैं । ६०. पासणाहचरिउ १०।१३।११० - ११२. ६१: उत्तरपुराण ७३।९६-११७. ६२. (अ) देखें - भगवान् पार्श्व : देवेन्द्रमुनि शास्त्री, पृ० ८०-८३ ॥ (ब) नागी नागश्च सम्प्राप्तसमभावौ कुमारतः बभूवतुहीन्द्रश्च तत्पत्नी च पृथुश्रियो ततस्त्रिशत्समामानकुमार समये गते ॥ —उत्तरपुराण ७३।११८-१९ पृ० ४३६-३७. ६३. ( अ ) धरणस्स णं नागकुमारिदस्स नागकुमारन्नो छ अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ तं जहा - आला, सक्का, सतेरा, सोयामणा इंदा धणविज्जुया । - स्थानांग ३५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002104
Book TitleArhat Parshva aur Unki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Mythology, & Literature
File Size4 MB
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