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अशुद्ध
की
पूर्वपुराण जिनेश्वर देव द्वितीय उपाधियां का
आदिपुराण जिनेश्वर देव ने तृतीय उपाधियाँ
की
ะ ๙ ๙ ๙ : * * * + * * * * *
रचा गया बिज्जल
१० १०२
भद्रवाहु, क्रमशः, क्योकि भूतबली' जैनाचायो दीक्षाचरण ?
की रचा बसवण्ण इन्होंने भद्रबाहु क्रमशः क्योंकि 'भूतबली' जैनाचार्यों दीक्षाचरण थे। जैनाचार्यों साथ रस
१०४
१०६
* * *
जैनचार्यों साथ रस
१०८
है.
१०९
११२ ११३
मलिल्नाथ भट्टळक धम व्या-व्याकरण क्योकि त व प्राचीग
११८
* * * * * * * * * * * * *
मल्लिनाथ भट्टाकलंक धर्म व्याकरण क्योंकि तक प्राचीन निगंटन् करना
निगटन्
१२० १२३
कना
no no
Bhond
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