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मराठी जैन साहित्य का इतिहास
हिराचन्द अमीचन्द शहा, सोलापुर का यशोधरचरित्र सरल कथावर्णन की दृष्टि से लोकप्रिय हुआ था ( १९१२ ) । इनकी दूसरी रचना व्रतशीलकथासंग्रह भी रोचक है ।
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शान्तिनाथ गोविन्द कटके तथा इनके बन्धु माणिक गोविन्द कटके के भक्तिपूर्ण पदों का संग्रह पद्य कुसुमावली १९१८ में प्रकाशित हुआ था । पंच परमेष्ठी - गुणवर्णन (१९१९) व पंचकल्याणिकवर्णन (१९२७) ये माणिकराव की तथा चोवीसतीर्थंकर पूजा यह शान्तिनाथ की रचना भी काफी लोकप्रिय हुई थी ।
रत्ननन्दि भट्टारक के भद्रबाहुपुराण का अनुवाद (१९२१) कल्लाप्पा अनंत उपाध्याय ने किया था ।
नेमचन्द वालचन्द गांधी, उस्मानाबाद ने नेमिचन्द्राचार्य के गोम्मटसार का मराठी रूपान्तर किया था। इस गहन ग्रन्थ के विषय को संक्षेप में समझाने के लिए इन्होंने गुणस्थान चर्चा व सप्ततत्त्वविचार नामक छोटी पुस्तकें भी लिखी थीं ( १९२२ ) ।
शांतिसागराचार्यचरितसुधा यह पद्यबद्ध रचना देवेन्द्रतनय, शमनेवाडी, द्वारा १९२४ में तथा देवेन्द्र कीर्तिचरितसुधानिधि यह पद्यबद्ध रचना सोनाबाई जिन्तूरकर, कारंजा, द्वारा १९२५ में लिखी गई थी । अपने समकालीन धर्माचार्यों के ये चरितकाव्य पठनीय हैं ।
कारंजा के भट्टारक वीरसेन के आध्यात्मिक प्रवचनों से प्रभावित होकर ब्रह्मय स्वामी, कुरुन्दवाड ने अनुभवप्रकाश नामक गद्यपद्यमिश्र रचना १९२९ में लिखी थी । इसका आत्मानुभववर्णन पुरानी मराठी रचनाओं की शैली का है । भट्टारक अकलंक के रत्नत्रयसार नामक कन्नड ग्रन्थ का मराठी अनुवाद (१९२९) बाहुबली शर्मा ने किया था । वृत्तिविलास की कनड धर्मपरीक्षा का मराठी अनुवाद ( १९३१ ) इनकी दूसरी महत्त्वपूर्ण रचना है ।
विष्णुकुमार डोणगांवकर, कारंजा ने समन्तभद्राचार्यकृत रत्नकरण्ड तथा नेमिचन्द्राचार्य कृत द्रव्यसंग्रह के छात्रोपयोगी मराठी संस्करण तैयार किये थे ( १९३० ) ।
नरेन्द्रनाथ भिसीकर, कारंजा ने पंडित गोपालदास बरैया की जैन सिद्धांत प्रवेशिका का छात्रोपयोगी मराठी संस्करण तैयार किया था ( १९३२ ) | इन्होंने वादीभसिंहसूरि के क्षत्रचूडामणि काव्य का मराठी अनुवाद (१९३८) तथा कुन्दकुन्दाचार्य के नियमसार का मराठी विवेचन ( १९६३ ) भी प्रकाशित किया । इनकी ये रचनाएँ भी महत्वपूर्ण हैं ।
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