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वर्तमानकालीन मराठी जैन साहित्यकार एवं उनकी रचनाएँ २३९ जनोपयोगी ललित कथाओं की रचना भी आपने विस्तृत रूप में की थीचन्द्रकान्ता, जटाशंकर, नयनतारा, नगरतारका, मनोरमा आदि २५ उपन्यास आपने लिखे थे। समय-समय पर जैन-जैनेतर पत्रों में आपके सैकड़ों लेख प्रकाशित हुए। इनमें समाज-सुधार के लिए प्रगतिशील विचारों का भावपूर्ण प्रतिपादन किया गया था। जैनेतर पत्रिकाओं में जिनकी रचनाएँ छपी ऐसे जैन लेखकों में आप पहले प्रमुख लेखक थे। रावजी नेमचन्द शहा
ये सोलापुर के प्रतिष्ठित वकील और साहित्यकार थे। जैनधर्मादर्श ( १९१० ) इनकी पहली रचना थी। इसमें प्रौढ़ किन्तु सुबोध शैली में जैन धर्म के सिद्धान्तों का विस्तृत वर्णन है । आचार्य अमितगति का सामायिक पाठ तथा आचार्य पूज्यपाद का समाधिशतक इन दो ग्रन्थों की विशद विवेचन सहित मराठी टीकाएँ आपने लिखीं ( १९१२)। जिनसेनाचार्य व गुणभद्राचार्य चरित ( १९१५ ) और इन आचार्यों की प्रसिद्ध रचना का सरल मराठी रूपान्तर महापुराणामृत ( १९१५ ) ये आपकी सरस रचनाएँ हैं। पूज्यपादाचार्य और अमृतचन्द्राचार्य के चरित भी आपने लिखे हैं । जैन-जैनेतर पत्रों में समय-समय पर आपके विद्वत्तापूर्ण कई लेख प्रकाशित हुए। सामाजिक और साहित्यिक कार्यों में एक प्रगतिशील नेता के रूप में आप प्रसिद्ध थे। जैन धर्म विषयक आक्षेपों का निरसन ( १९३८) तथा तीर्थंकरों की प्राचीनता ( १९५०) नामक आप की उत्तरकालीन कृतियां भी महत्त्वपूर्ण हैं । तात्या केशव चोपडे
भिलवडी के ये विद्वान् अच्छे संगीतज्ञ थे। महाराष्ट्र के जैन समाज में कीर्तनकार के रूप में आपने काफी कीर्ति पाई। जैनभजनामृत पद्यावली (१९११) नामक आपकी पहली रचना संगीत के विद्यार्थियों के लिए उपयुक्त है । पूजा व सद्यःस्थिति ( १९२४ ), जगदुद्धारक जैनधर्म ( १९३८), जैन व हिन्दू ( १९४४ ), पंढरपुर का विठोबा ( १९४७ ) इन पुस्तकों द्वारा बापने जैन समाज की अस्मिता जागृत कर प्रगति का मार्ग दिखाने का प्रशंसनीय प्रयत्न किया था। रावजी सखाराम दोशी
आप सोलापुर के दोशी परिवार के तीसरे उज्ज्वल रत्न थे। आचार्य इन्द्रनंदिकृत श्रुतावतार (१९१२) तथा पंडित दौलतरामकृत छहढाला (१९१३) के
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