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________________ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास तोड़ने में सफल वर के साथ विवाह करने का वचन पालता है। पर कविवर इस्तिमल्ल ने नाटकीय अभिनय के योग्य उक्त घटनाओं को न चुन कर उसे प्रारंभ से ही राम-सीता के प्रेम-व्यापार पर आश्रित किया है । वे नायक-नायिका के समागम को कई बार दिखला कर उद्दीपन भावों का चित्रण करते हैं । ५९८ हस्तिमल्ल की यह रूपकात्मक अन्तिम कृति है । यह अन्य कृतियों की अपेक्षा सरल तथा प्रवाहपूर्ण है । नाट्यशास्त्र के अनुसार इसे त्रोटक कहना चाहिए जो कि साहित्यदर्पण के अनुसार उपरूपकों का एक भेद है । त्रोटक का लक्षण इस प्रकार है : सप्ताष्टनवपञ्चांकं दिव्यमानुषसंश्रयम् । त्रोटकं नाम तत्प्राहुः प्रत्येकं सविदूषकम् ।। ५.२७३ इसमें यह लक्षण पूर्ण घटित होता है । इसकी संवाद - शैली सुन्दर तथा मुहावरों एवं सुभाषितों से भरपूर है । ज्योतिष्प्रभानाटक : इस नाटक की कथावस्तु १६ वें तीर्थंकर शान्तिनाथ के नवम पूर्वभव के जीव अमिततेज विद्याधर और त्रिपृष्ठ नारायण की पुत्री ज्योतिष्प्रभा का रोमांटिक चरित्र है । अमिततेज का पावन चरित्र तो गुणभद्र के उत्तरपुराण के ६२ पर्व में वर्णित है पर वहाँ ज्योतिष्प्रभा के चरित्र का कोई विशेष वर्णन नहीं है । सम्भव है कि इस नाटक का आधार कोई शान्तिनाथचरित होगा जिसमें ज्योतिष्प्रभा के रोमांटिक जीवन का विवेचन हो । रचयिता एवं रचनाकाल - इसके रचयिता ब्रह्मसूरि' हैं जो नाट्याचार्य हस्तिमल्ल के वंशज हैं और उनसे लगभग १०० वर्ष बाद विक्रम की १५वीं शताब्दी में हुए हैं । इनके त्रिवर्णाचार और प्रतिष्ठातिलक ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं । १. जैन साहित्य और इतिहास, पृ० ४१३; यह नाटक बेंगलोर के संस्कृत मासिक पत्र 'काव्याम्बुधि' ( सन् १८९३-९४ ) में प्रकाशित हुआ है; जिनरत्न कोश, पृ० १५१. २. प्रदोषे जायते प्रातः किं का मंगलवाचकम् । किं रूपयन्तु तच्चेह ब्रह्मसूरिकृतिश्च का ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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