________________
५८२
जैन साहित्य का वृहद् इतिहास
९. यादवाभ्युदय:
रामचन्द्रसूरि का यह नाटक' भी अनुपलब्ध है पर 'नाट्यदर्पण' में इसका आठ बार उल्लेख है। इसमें मुख्य रूप से कृष्ण के जीवन की घटना दो है जिसमें कंस और जरासंध के वध के बाद कृष्ण के राज्याभिषेक का अभिनय है । रघुविलास में रामचन्द्रसूरि की पांच उत्तम कृतियों में राघवाभ्युदय के साथ इसका भी उल्लेख है । इसमें भी १० अंक मालूम होते हैं। नाटककार ने अन्तिम पद्य में मुद्रालंकार द्वारा अपना नाम सूचित किया है। १०. वनमाला:
रामचन्द्रसूरिकृत यह एक नाटिका है । यह रचना भी अनुपलब्ध है। नाट्यदर्पण में यह एक बार उद्धत है। इसमें राजा (संभवतः नल) और दमयन्ती का संवाद है जिसमें दमयन्ती उस पर अन्य नारीरक्त होने से क्रुद्ध है।
संभवतः इसमें नल और नायिका वनमाला के बीच प्रेमव्यापार का वर्णन है। इसका नायक नल है। इसमें नाटिका की प्रकृति के अनुसार नायक गुप्त रूप से नायिका से प्रेम करता है। ज्येष्ठ रानी रोष प्रकट करती है और बाधाएँ उपस्थित करती है पर अन्त में नायक-नायिका के विवाह की स्वीकृति दे देती है। चन्द्रलेखाविजयप्रकरण: ___ यह हेमचन्द्राचार्य के अन्यतम शिष्य देवचन्द्र की रचना है। इसमें पांच
यह कुमारविहार के मूलनायक पावजिन के समीप में स्थापित अजितनाथ के मन्दिर में वसन्तोत्सव पर कुमारपाल की परिषद् के सन्तोष के लिए खेला १. वही, पृ० २३३. २. नाव्यदर्पण, पृ० ११५; जिनरत्नकोश, पृ० ३४१, नाट्यदर्पण : ए क्रिटिकल
स्टडी, पृ० २३३. ३. जिनरत्नकोश, पृ० १२०, यहाँ इसके कर्ता देवचन्द्र को हेमचन्द्राचार्य का
गुरु लिखा गया है जो गलत है। ये देवचन्द्र हेमचन्द्राचार्य के शिष्य थे। हेमचन्द्र के गुरु का नाम भी देवचन्द्रसूरि था।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org