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५८.
जैन साहित्य का बृहद् इतिहास घटना जैन रामायण के अनुसार वर्णित है। रामचन्द्रसूरि के नाटकों में यह ऐसा नाटक है जिसे नाट्यदर्पण में बहुत बार उद्धृत किया गया है।
प्रथम अंक में राजा दशरथ के वचन-प्रतिपालनार्थ राम, सोता और लक्ष्मण का वनगमन। दूसरे अंक में रावण द्वारा सीता का हरण, जटायु का सीता के बचाने में जीवन-त्याग । तीसरे अंक में राम का करुण विलाप, हनुमानसुग्रीव से परिचय । चतुर्थ अंक में रावण की राजधानी का वर्णन, सीता को आकृष्ट करने में रावण का असफल रहना ।
पंचम अंक में विभीषण रावण को सत्परामर्श देता है पर कोई फल नहीं होता । राम का सन्देश लेकर दूत का आना और लौट जाना । अन्त में दोनों ओर से युद्ध छिड़ जाता है । छठे अंक में युद्ध का विवरण, रावण की शक्ति से लक्ष्मण का मूछित होना और हनुमान आदि का मूर्छा दूर करने का प्रयत्न करना है। वे अंक में मन्दोदरी आदि का रावण को समझाना पर कोई फल न निकलना, रावण का राम से अन्त तक लड़ने का निश्चय करना है। ८वे अंक में राम और रावण में युद्ध का वर्णन है। रावण छल से सीता को उसके पिता जनक द्वारा राम के मरने की सूचना देता है, सीता अग्नि में कूदने की तैयारी करती है, हनुमान से सूचना पा राम सीता को बचाने के लिए दौड़ते हैं। रावण के मरने की सूचना नेपथ्य से दी जाती है। नाटक का अन्त राम-सीता के सानन्द सम्मिलन से होता है । जाम्बवन्त अन्तिम शुभाशंसा पढ़ता है ।
यहाँ सीता के अपहरण की घटना दूसरे ढंग से निरूपित है।। रावण का वेश बदलकर राम के पास आना-यह कवि का नूतन निर्माण है और बड़ा रोचक तथा नाटकीय है परन्तु लम्बे-लम्बे पद्यों की भरमार से वातावरण का सौन्दर्य नष्ट हुआ है और कथा के स्वाभाविक प्रवाह में बाधा हुई है। राम का सीता के खो जाने पर करुण विलाप कालिदास के विक्रमोर्वशीय की याद दिलाता है जो बड़ा हृदयद्रावक है। नाटक में दिव्यतत्त्व-राक्षसों की दिव्यशक्ति-की भरमार है जो कोतूहल बढ़ाने में आवश्यक समझा गया है।
इस नाटक का संक्षिप्त रूप 'रघुविलासनाटकोद्धार' मिलता है जिसमें गद्य भाग को हटाकर केवल पद्य रखे गये हैं और इस तरह वह नाटक का आधा रह गया है।
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