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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
सर्वप्रथम यहाँ हम रामचन्द्र कवि की नाटक कृतियों का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत करते हैं। पहले कवि का परिचय दिया जा रहा है ।
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कवि रामचन्द्र :
ये हेमचन्द्राचार्य के शिष्यों में सर्वप्रधान थे ।' ग्रन्थकार के व्यक्तिगत जीवन के सम्बन्ध में अधिक नहीं मालूम फिर भी पं० लालचन्द्र गांधी ने विलास की भूमिका में लिखा है कि रामचन्द्र वि० सं० १९४५ में उत्पन्न हुए थे । उन्हें सं० ११६६ में सूरिपद मिला था । वे सं० १२२८ में हेमचन्द्र के शिष्य हुए एवं पट्टधर हुए और सं० १२३० में स्वर्गवासी हुए । प्रभावकचरित में हेमचन्द्र का जीवनचरित्र बतलाते हुए कहा गया है कि रामचन्द्र एक योग्य शिष्य थे जो हेमचन्द्र की परम्परा को चला सकते थे ।
गुजरात के नाट्यकारों में रामचन्द्र सर्वोच्च थे । उन्होंने नाट्यशास्त्र का पूर्ण अध्ययन किया था । उनकी एतद्विषयक कृति नाट्यदर्पण एक मौलिक रचना है। इसमें नाटक के प्रकारों, स्वरूप और रसों का ऐसा वर्णन किया गया है जो भरत के नाट्यशास्त्र से भिन्न हैं । इसमें संस्कृत के कितने ही उपलब्ध और अनुपलब्ध नाटकों के भी उल्लेख हैं जिनमें कुछ तो स्वयं कवि की रचनाएं हैं। इस ग्रन्थ में विशाखदत्त के लुप्त नाटक 'देवीचन्द्रगुप्त' के अनेक उद्धरण दिये गये हैं जो गुप्त इतिहास की लुप्त कड़ियाँ संकलित करने में बड़े महत्त्वपूर्ण प्रमाणित हुए हैं ।
उनकी शैली में प्रतिभा और प्रवाह है । वे इस कला में निपुण थे कि साधारण से साधारण कहानी को कैसे सुन्दरतम नाटकीय ढंग से परिवर्तित किया जाय। उन्होंने भावाभिव्यक्ति में पर्याप्त मौलिकता दिखलाई है । इसके अतिरिक्त वे प्रथम श्रेणी के समालोचक, कविता के हार्दिक प्रशंसक और तत्काल समस्यापूर्ति करने वाले थे । इन्होंने अनेक आलंकारिक स्तोत्र भी रचे हैं । रामचन्द्रसूरि चार प्रकार की संस्कृत नाटक कृतियों के लेखक थे : नाटक, प्रकरण, नाटिका और व्यायोग |
उनकी पौराणिक एवं काल्पनिक कथावस्तु पर लिखी कृतियों का परिचय इस प्रकार है :
१. भोगीलाल ज० सांडेसरा, हेमचन्द्राचार्य का शिष्यमण्डल; नाट्यदर्पण : ए क्रिटिकल स्टडी, पृ० २०९-२२२.
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