SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 565
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५५२ जन साहित्य का वृहद् इतिहास १७-२०वीं शती के दूतकाव्य : १७वीं शती के मुनि विमलकीर्ति ने चन्द्रदूत नामक एक अन्य दूत. काव्य की रचना की जिसमें १६९ पद्य हैं। यह काव्य मेघदूत की पादपूर्ति के रूप में रचा गया है पर कवि ने कहीं-कहीं भावों के स्पष्टोकरणार्थ अधिक पद्य रचकर स्वतन्त्रता से भी काम लिया है। इसका वर्ण्यविषय यही है कि कवि ने चन्द्र को सम्बोधित कर शत्रुजयतीर्थस्थ आदिजिन को अपनी वन्दना कहलाई है । पूर्ण काव्य पढ़ लेने के बाद भी यह ज्ञात नहीं होता कि कवि ने अपना नमस्कार चन्द्रमा को किस स्थान से कहलाया है। फिर भी रचना बड़ी भावपूर्ण और विद्वत्ता की परिचायक है। अनेकार्थ काव्य की दृष्टि से भी इस दूतकाव्य का महत्त्व है। इसके रचयिता विमलकीर्ति साधुसुन्दर के शिष्य थे जो कि साधुकीर्ति पाठक के शिष्य थे । रचनाकाल वि० सं० १६८१ है। __१८वीं शती में हमें प्रमुख ३ दूतकाव्य मिलते हैं। प्रथम चेतोदूत, द्वितीय मेघदूतसमस्यालेख तथा तृतीय इन्दुदूत । प्रथम 'चेतोदूत में अज्ञात कवि अपने गुरु के चरणों की कृपादृष्टि को ही अपनी प्रेयसी के रूप में मानकर उसके पास अपने चित्र को दूत बनाकर भेजता है। इसमें गुरु के यश, विवेक और वैराग्य आदि का विस्तृत वर्णन है । इसमें १२९ मन्दाक्रान्ता वृत्त हैं । द्वितीय 'मेघदूतसमस्यालेख' में उपाध्याय मेघविजय ने औरंगाबाद से अपने गुरु के चिरवियोग से व्यथित होकर उनके पास मेघ को दूत बनाकर भेजा है। मेघ गुरु के पास जिस प्रकार सन्देश लेकर जाता है उसी तरह प्रतिसन्देश लेकर लौट आता है। इसमें १३० मन्दाक्रान्ता वृत्त हैं और अन्त में एक अनुष्टभ । इस काव्य में औरंगाबाद से देवपत्तन (गुजरात) तक के मार्ग का वर्णन आता है । विषय, भाव, भाषा और शैली की दृष्टि से यह काव्य सभी दूतकाव्यों से श्रेष्ठ है। रचयिता एवं रचनाकाल-इसके रचयिता अनेक काव्यग्रन्थों के रचयिता विद्वान् महोपाध्याय मेघविजयजी हैं। इन्होंने कई समस्यापूर्तिकाव्य भी रचे हैं। इनका परिचय उनके अन्य ग्रन्थों के प्रसंग में दिया गया है। यह काव्य सं० १७२७ में पूर्ण हुआ था। १. चन्द्रदूत, प्रशस्ति-पद्य १६७-१६८, जिनदत्त सूरि ज्ञानभण्डार, सूरत. २. जैन भारमानन्द सभा, भावनगर, वि० सं० १९७०. ३. वही. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy