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________________ ५३२ जैन साहित्य का वृहद् इतिहास दूत ने उक्त राजा को उसके प्रधान सेनापति वज्रायुध की दक्षिण-विजय का समाचार सुनाया और कहा कि उस विजय में एक समरकेतु नामक कुमार को, जो घायल पड़ा हुआ था, वज्रायुध उठा लाया है और उसे राजा के समीप भेजा है। राजा ने उस कुमार को अपने पुत्रवत् रखा और हरिवाहन तथा समरकेतु दानों मित्रवत् रहने लगे। एक बार एक क्रीड़ामण्डप में मनोरंजन में व्यस्त कुमार को एक बन्दीपुत्र ने एक ताडपत्र लाकर दिया जिसमें एक आर्याछन्द लिखा हुआ था। उसका अर्थ समरकेतु के सिवाय कोई न समझ सका । समरकेतु इसके बाद ही बड़ा उदास दिखाई पड़ा। अन्य लोगों के बार-बार पूछने पर उसने दक्षिण दिशा में द्वीपान्तरों में अपनी सामुद्रिक विजय-यात्रा' का विस्तार से वर्णन किया और वहाँ कांचीनरेश कुसुमशेखर की रूपवती पुत्री मलयसुन्दरी के प्रति तीव्र आकर्षण की बात कह उसकी स्मृति से व्याकुल हो गया। इसी बीच एक प्रतीहारी ने राजकुमार हरिवाहन को एक सुन्दरी का चित्र दिखाया जिसे गन्धर्वक नामक युवक लाया था। गन्धर्वक ने बतलाया कि यह विद्याधर नृप चक्रसेन की पुत्री तिलकमंजरी का चित्र है जो पुरुषमात्र को आकृति से अरुचि करती है। शायद किसी अपूर्वसुन्दर राजकुमार के दर्शन से उसकी यह अरुचि हट सके इसलिए वह पृथ्वीतल पर ऐसे राजकुमार के चित्र को उतार कर उसके पास ले जाने के लिए प्रयत्नशील है और अभी वह कांचीनरेश कुसुमशेखर के पास अपने राजा का सन्देश लेकर जा रहा है। यह सुनकर समरकेतु ने कांची की राजकुमारी मलयसुन्दरी के पास सन्देश भेजने का अच्छा मौका पाया और उसे लिखकर वह सन्देश दिया भी। गन्धर्वक के चले जाने पर हरिवाहन के चित्त में तिलकमंजरी की धुन लग गई। एक समय वे दोनों राजकुमार अन्य मित्रों के साथ देशान्तरभ्रमण में निकले और कामरूप देश पहुँचे। उस देश के राजा ने उनका खूब सत्कार किया। वहाँ हरिवाहन ने एक बिगड़े हाथो को अपने वश में कर लिया। हाथी थोड़ी देर बाद अपनी पीठ पर बैठने पर हरिवाहन को लेकर न जाने किधर १. ग. मोतीचन्द्र ने जर्नल ऑफ उत्तर प्रदेश हिस्टोरिकल सोसाइटी के भाग २०, अंक १-२ में उक्त अंश का अनुवाद प्रकट कर तत्कालीन नाविकतंत्र पर अच्छा प्रकाश डाला है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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