SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 388
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कथा-साहित्य ___ कुमारपाल के उदय के बाद उसके जैसे नरेश विक्रमादित्य के उक्त पक्ष ने जैन कवियों को आकर्षित किया और उसे परम दानी तथा अनेकविध अलौकिक शक्तियों का पुञ मान लिया । दान के लिए उसे सुवर्णपुरुष की प्राप्ति तथा अलौकिक कार्यों के लिए अग्निवेताल की सिद्धि की कल्पना की गई है। कुमारपाल की मृत्यु के सौ वर्ष बाद तो उसे एक आदर्श जैन नरेश ही मान लिया गया। सं० १२०० के बाद विक्रम को दृष्टान्तरूप उपस्थित करनेवाला ग्रन्थ है सोमप्रभाचार्य का कुमारपालप्रतिबोध (सं० १२४१) जिसमें विक्रम के परपुरप्रवेश की निन्दा तथा उसके परोपकार-दयाभावों की प्रशंसा की गई है और कहा गया है कि उसने सुवर्णपुरुष के कारण याचकों को सुखी तथा भिन्न ऋद्धियों द्वारा प्रजा की उन्नति की थी। इसके बाद प्रभाचन्द्र के 'प्रभावकचरित' (सं० १३३४ ) में अनेक बातें कही गई हैं जैसे भूगुपुर ( भड़ौच) तीर्थ का उद्धार, वायट में महावीर निनालय का निर्माण, सिद्धसेन को धर्मलाभ कहने पर एक करोड़ रुपये देना आदि । मेस्तुंग ने 'प्रबन्धचिन्तामणि' (सं० १३६१) में विक्रम के लिए सर्वप्रथम एक स्वतंत्र प्रबन्ध लिखा है। जिसमें उसे जन्म से दरिद्र तथा बाल्यकाल में राज्य से निष्कासित तथा पीछे उसकी राज्यप्राप्ति, चमत्कार आदि की बातें दी गई हैं। जिनप्रभसूरि के विविधतीर्थकल्प (सं० १३६५-१३९०) में यद्यपि विक्रम का जीवनवृत्त नहीं दिया गया पर विविध प्रसङ्गों में उसे जैनधर्म प्रसारक बतलाया गया है। इसी तरह रानशेखर के 'प्रबन्धकोश' (सं० १४०५) में विक्रमादित्य का स्वतंत्ररूप से जीवनवृत्त तो नहीं दिया गया पर उसके अनेक जीवन प्रसङ्गों को संकलित किया गया है। इसमें विक्रमादित्य के पुत्र विक्रमसेन की कथा के प्रसंग में चार पुत्तलिकाओं की कथा दी गई है जिनमें तीन तो कथासरित्सागर में वर्णित 'वेतालपञ्चविंशति' की कथा से मेल खाती हैं। प्रबन्धसाहित्य में विक्रमादित्य के लघुचरित्र के साथ विशेषरूप से अनेक लोककथाएँ गूंथी गई हैं। १. विशेष विवरण के लिए देखें-विक्रम वोल्यूम, सिंधिया प्राच्य परिषद्, उज्जैन से सन् १९४८ में प्रकाशित, पृ० १३७-६७० में हरि दामोदर वेलंकर का लेख 'विक्रमादित्य इन जैन ट्रेडिशन' । उक्त ग्रन्थ में विकमादित्य की ऐतिहासिकता पर भनेक महत्वपूर्ण लेख हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy