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कथा-साहित्य
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के संस्थापक थे । इसी कथा पर नयसुन्दरकृत संस्कृत सुरसुन्दरीचरित्र का उल्लेख मिलता है।
नर्मदासुन्दरीकथा-इस कथा में नर्मदासुन्दरी द्वारा अनेक विचित्र परिस्थितियों में पड़कर अपने सतीत्व की रक्षा करने की अद्भुत कथा का वर्णन है।'
कथावस्तु-नर्मदासुन्दरी का विवाह एक अजैन पर विवाह के पूर्व जैनधर्म स्वीकार करनेवाले महेश्वरदत्त वणिक से होता है। वह उसे ले धन कमाने के लिए यवनद्वीप जाता है पर उसे नर्मदासुन्दरी के चरित्र पर शंका होने से धोखे से मार्ग में सोयी छोड़ देता है। बाद में वह कई कष्ट झेलने के बाद अपने चाचा वीरदास को मिल जाती है और उसके साथ बब्बर देश जाती है। यहीं से उसका जीवन-संघर्ष उत्तरोत्तर बढ़ता है। वहाँ हरिणी नामक वेश्या की दासियाँ उसे फुसलाकर ले भागती हैं। वेश्या उसे अपने जैसा जीवन जीने को बाध्य करती है पर वह अपने शीलवत में दृढ़ रहती है। फिर वह दूसरी वेश्या करिणी के चक्कर में फंसती है और वहाँ से राजा द्वारा पकड़ कर बुलाई जाती है पर रास्ते में उसने पगली बनने का अभिनय किया इससे वह बच सकी। फिर जिनदास श्रावक की सहायता से अपने चाचा वीरदास के पास पहुंच सकी । अन्त में संसार से विरक्त होकर उसने सुहस्तसूरि से दीक्षा ले ली।
नर्मदासुन्दरी के कथानक को लेकर कई कवियों ने प्राकृत, अपभ्रंश और गुजराती में काव्य लिखे। उनमें देवचन्द्रसूरि और महेन्द्रसूरि कृत प्राकृत रचना प्रकाशित हुई है। अपभ्रंश में जिनप्रभसूरि की और गुजराती में मेरुसुन्दर की रचना भी प्रकाश में आई है।
पहली देवचन्द्रसूरिकृत रचना २५० गाथा-प्रमाण है। उन्होंने अपने पूर्वगुरु आचार्य प्रद्युम्नसरिरचित 'मूलशुद्धिप्रकरण' नामक प्राकृत ग्रन्थ के ऊपर विस्तृत टीका की रचना की थी। उसी टीका में उदाहरणरूप अनेक प्राचीन कथाओं का संकलन किया था। उसमें प्रस्तुत नर्मदासुन्दरी की कथा, प्रसंगवश संक्षेप में लिखी है। यह रचना कथागत मूलवस्तु के परिज्ञान में बहुत उपयोगी है । देवचन्द्रसूरि ने अन्त में उल्लेख किया है कि यह कथा मूलरूप में वसुदेवहिण्डी नामक प्राचीन कथाग्रन्थ में ग्रथित है। उसी के आधार से उन्होंने अपनी
१. जिनरत्नकोश, पृ० ४४७. २. वही, पृ० २०५.
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