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________________ कथा-साहित्य २५७ कुमारपाल-प्रतिबोध ( कुमारवाल-पडिबोह)-इसे जिनधर्मप्रतिबोध और हेमकुमारचरित भी कहते हैं। इसमें पाँच प्रस्ताव हैं। पाँचवाँ प्रस्ताव अपभ्रंश तथा संस्कृत में है। यह प्रधानतः प्राकृत में लिखी गद्य-पद्यमयी रचना है । इसमें ५४ कहानियों का संग्रह है। ग्रंथकार ने दिखलाया है कि इन कहानियों के द्वारा हेमचन्द्रसूरि ने कुमारपाल को जैनधर्म के सिद्धान्त और नियम समझाये थे । इसकी अधिकांश कहानियाँ प्राचीन जैनशास्त्रों से ली गई हैं। इसमें श्रावक के १२ व्रतों के महत्त्व सूचन करने के लिए तथा पाँच-पाँच अतिचारों के दुष्परिणामों को सूचित करने के लिये कहानियाँ दी गई हैं। अहिंसाव्रत के महत्त्व के लिए अमरसिंह, दामन्नक आदि, देवपूजा का माहात्म्य बताने के लिए देवपालपद्मोत्तर आदि की कथा, सुपात्रदान के लिए चन्दनबाला, धन्य तथा कृतपुण्यकथा, शीलव्रत के महत्त्व के लिए शीलवती, मृगावती आदि की कथा, चूतक्रीड़ा का दोष दिखलाने के लिए नलकथा, परस्त्री-सेवन का दोष बतलाने के लिए द्वारिकादहन तथा यादवकथा आदि आई हैं। अन्त में विक्रमादित्य, स्थूलभद्र, दशार्णभद्र कथाएँ भी दी गई हैं। .. __ रचयिता और रचनाकाल-इसकी रचना सोमप्रभाचार्य ने की है। सोमप्रभ के पिता का नाम सर्वदेव और पितामह का नाम जिनदेव था। ये पोरवाड़ जाति के जैन थे। सोमप्रभ ने कुमार अवस्था में जैन-दीक्षा ले ली थी । वे बृहद्गच्छ के अजितदेव के प्रशिष्य और विजयसिंहसूरि के शिष्य थे । सोमप्रभ ने तीव्र बुद्धि के प्रभाव से समस्त शास्त्रों का तलस्पर्शी अभ्यास कर लिया था। वे महावीर से चलनेवाली अपने गच्छ की ४०वीं पट्टपरम्परा के आचार्य थे। इनकी अन्य रचनाएँ शतार्थीकाव्य, शृंगारवैराग्यतरंगिणी, सुमतिनाथचरित्र, सूक्तमुक्तावली १. जिनरत्नकोश, पृ० ९२; गायकवाड़ ओरियण्टल सिरीज, सं० १४, बड़ौदा, १९२०; इसका गुजराती अनुवाद जैन आत्मानन्द सभा, भावनगर से सं० १९८३ में प्रकाशित; विशेष के लिए देखें-विण्टरनिल्स, हिस्ट्री माफ इण्डियन लिटरेचर, भाग २, पृ० ५७०, आल्सडोर्फ ने माल्ट उण्ड न्यू इण्डिश स्टुडियन, १९२८, पृ० ८ पर इसके विवरणों की समीक्षा की है; प्रद्योतकथा के लिए 'अनल्स आफ दी भाण्डारकर मो. रिसर्च इन्स्टी०', भाग २, पृ० १-२१ देखें; जगदीशचन्द्र जैन, प्राकृत साहित्य का इतिहास, पृ० ४६३-४७२. वेलंकर कम्मेमोरेशन वोल्यूम, पृ० ४१-४४ में डा. घटगे का लेख देखें। १७ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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