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________________ पौराणिक महाकाव्य २२५ उपमा, उत्प्रेक्षा और अर्थान्तरन्यास तो यत्र-तत्र देखे जाते हैं । इसमें अनुष्टुभ् छन्द का ही अधिक व्यवहार हुआ है। केवल ११६ पद्य विविध छन्दों कुमारपालभूपालचरित के अन्त में दी गई प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि इसके कर्ता जयसिंह सूर हैं जो कृष्णर्षिगच्छ के थे । प्रशस्ति में गुरुपरम्परा भी दी गई है। तदनुसार कृष्णर्षिगच्छ में जयसिंहसूरि प्रथम हुए जिन्होंने सं० १३०१ में मरुभूमि में मन्त्र के प्रभाव से जलवर्षा करके संघ को नवजीवन प्रदान किया था। इनके शिष्य प्रसन्नचन्द्र हुए। उनके शिष्य महेन्द्रसूरि हुए जिनका सम्मान बादशाह मुहम्मदशाह ने किया। प्रस्तुत काव्य के कर्ता इन्हीं के शिष्य थे। जयसिंहसूरि के ही शिष्य नयचन्द्रसूरि थे जिन्होंने हम्मीरमहाकाव्य जैसे ऐतिहासिक ग्रन्थ की रचना की । नयचन्द्रसूरि ने उक्त महाकाव्य की प्रशस्ति में जयसिंहसूरि को षटभाषाचक्री सारंग ( हम्मीर के राजपण्डित) को हरानेवाला तथा न्यायसारटीका का कर्ता तथा नव्यव्याकरण का कर्ता माना है। ये जयसिंहसूरि हम्मीरमदमर्दन के कर्ता से भिन्न हैं। प्रस्तुत चरित वि० सं० १४२२ में बनकर समाप्त हुआ था।' पन्द्रहवीं शती के उत्तराध का काव्य है कुमारपालप्रबन्ध । यह एक गद्य-पद्य मिश्रित रचना है। इसे जिनमण्डनगणि ने वि० सं० १४९२ में पूर्ण किया है।' उन्होंने अपने इस ग्रन्थ की सामग्री मुख्यरूप से प्रबन्धचिन्तामणि और कुमारपालभूपालचरित से ली है और पिछले ग्रन्थ से तो बिना उल्लेख के अनेक पद्य खुले रूप में उद्धृत किये गये हैं, यद्यपि यह ग्रन्थ गद्य में लिखा गया है। उक्त दो ग्रन्थों के सिवाय जिनमण्डन ने प्रभावकचरित और एक प्राकृत-ग्रन्थ का भी उपयोग किया है जिसका मिलान नहीं हो सका है। उसने मोहराजपराजय का सार भी दिया है और ऐसा समझ लिया है कि उक्त नाटक से सम्बद्ध घटना मानों वास्तव में हुई हो। जयसिंहसूरि ने इसे पहले ही सार रूप में दिया है और संभवतः जयसिंह के ग्रन्थ से इसमें नकल की गई हो। वास्तव में जिनमण्डन की यह रचना ऊपर निर्दिष्ट ग्रन्थों से चुने अंशों का शिथिल संग्रह है। १. श्री विक्रमनृपाद् द्वि द्वि मन्वब्दे(१४२२)ऽयमजायत् । ग्रन्थः ससप्तत्रिशती षट् सहस्राण्यनुष्टुभाम् ॥ २. जिनरत्नकोश, पृ० ९३; मात्मानन्द जैन सभा, ग्रन्यांक ३४, भावनगर, सं० १९७१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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