SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 233
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२० जैन साहित्य का बृहद् इतिहास पाँच सर्गों में उनके गुरु विजयदेव का चरित्र भी दिया गया है। यह भी एक ऐतिहासिक महत्त्व का काव्य है। इसका उक्त प्रसंग में वर्णन करेंगे। इसके रचयिता उक्त मेघविजयगणि हैं । रचनाकाल ज्ञात नहीं है । विजयोल्लासमहाकाव्य-यह एक अज्ञात कृति थी जिसकी अपूर्ण प्रति सौराष्ट्र के जूनागढ़ शहर के ज्ञानभण्डार से मिली है। इसके कर्ता महोपाध्याय यशोविजय ( १७.१८वीं शता० ) हैं जो अनेक ग्रन्थों के रचयिता हैं। इसमें श्री हीरविजयसूरि की परम्परा में विजयदेवसूरि के शिष्य विजयसिंहसूरि का जीवनवृत्त वर्णित है। ग्रन्थ का प्रारंभ ऐं नमः से होता है और तीन मंगलाचरण श्लोकों के प्रारंभ में ऐंकार सारं, ऐन्दं प्रकाशं और ऐंकारमाराधयताम् शब्दों का प्रयोग हुआ है । चौथे पद्य से यमकालंकार युक्त भाषा का प्रयोग हुआ है। इसके बाद विजयसिंहसूरि का नामोल्लेखपूर्वक चरित प्रारम्भ होता है और केवल पहले सग में १०२ दलोकों में पूर्ण होता है। सर्गान्त में कई श्लोक विविध छन्दों में लिखे गये हैं। सर्ग के अन्त में 'इति श्रीविजयोल्लासे विजयाङ्कमहाकाव्ये प्रथमसर्गः' लिखा है। खरतरगच्छीय आचार्यों के जीवनचरित्र: तेरहवीं-चौदहवीं शताब्दी के कतिपय खरतरगच्छीय आचार्यों के समकालिक रचयिताओं द्वारा लिखे गये लघुचरित' उपलब्ध होते हैं जो प्राकृत भाषा में निबद्ध धार्मिक काव्यों के अच्छे नमूने हैं। साथ ही उनसे कतिपय ऐतिहासिक महत्त्व की बातें भी प्रकट होती हैं। जिनपतिसूरि-पंचासिका-इसमें मणिधारी जिनचन्द्र (२) सूरि के शिष्य जिनपति का ५५ गाथाओं में माता-पिता, नगर आदि के नाम के साथ जन्म (सं० १२१०), दीक्षा एवं आचार्यपद (सं० १२२३) तक का चरित्र वर्णित है। इसके रचयिता ने अपना नाम प्रकट नहीं किया है पर 'जिणवइणो नियगुरुणो' वाक्य से जिनपति का शिष्य होना प्रकट किया है। जिनपति षट्त्रिंशत् वाद १. महावीर जैन विद्यालय सुवर्ण महोत्वव ग्रन्थ, खण्ड २, बम्बई, १९६८, पृ. २३३-२३५. २. जिनभद्रसूरिस्वाध्यायपुस्तिका (अप्रकाशित), अजीमगंज की बड़ी पोसाल में सं० १४९० में लिखी प्रति. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy