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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
प्रारंभ में कहा गया है कि जयदेवादि कवियों ने जो गद्य-पद्यमय कथा लिखी है वह मन्दबुद्धियों के लिए विषम है। मैं मल्लिषेण विद्वज्जनों का मन हरण करनेवाली उसी कथा को प्रसिद्ध संस्कृत वाक्यों में पद्यबद्ध रचता हूँ ।" यह काव्य बहुत सरल और सुन्दर है ।
रचयिता और रचनाकाल — इसके रचयिता मल्लिषेण हैं । ग्रन्थ के अन्त में दी गई प्रशस्ति से ग्रन्थकार और काव्य के विषय में पर्याप्त परिचय मिलता है । तदनुसार ये उन अजित सेन की शिष्य परम्परा में हुए हैं जो गंगनरेश रायमल्ल और उनके मंत्री तथा सेनापति चामुण्डराय के गुरु थे और जिन्हें नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती ने 'भुवनगुरु' कहा है । अजितसेन के शिष्य कनकसेन, कनकसेन के जिनसेन और जिनसेन के शिष्य मल्लिषेण । मल्लिषेण ने जिनसेन के अनुज या सतीर्थ नरेन्द्रसेन को भी गुरूरूप से स्मरण किया है। ये न्यायविनिश्चयविवरणकार वादिराज के समकालीन थे । इनका समय ग्यारहवीं सदी का अन्त और बारहवीं का प्रारंभ हो सकता है। इनकी कई रचनाएँ मिलती हैं-महापुराण, भैरवपद्मावतीकल्प, सरस्वतीमंत्रकल्प, ज्वालिनी कल्प, कामचाण्डालीकल्प । इनमें केवल महापुराण का रचनाकाल ज्येष्ठ सुदी ५, श० सं० ९६९ ( वि० सं० ११०४ ) दिया गया है । अन्य ग्रन्थों का समय नहीं दिया गया है ।
जीवन्धरचरित—जैन मान्य कामदेवों में जीवन्धर २३वें कामदेव थे । इनके चरित को लेकर संस्कृत और तमिल में कवियों ने गद्यकाव्य, चम्पूकाव्य तथा सामान्यकाव्यों की रचना की है । गुणभद्रकृत उत्तरपुराण के ७५ अध्याय में जीवन्धर की कथा सर्वप्रथम देखने में आती है। अबतक उपलब्ध रचनाओं की सूची इस प्रकार है
१. क्षत्रचूडामणि या जीवन्धरचरित ( लघुकाव्य ) वादीभसिंह ओडयदेव २. गद्यचिन्तामणि ( गद्यकाव्य )
१. कविभिर्जयदेवाद्यः
गद्यपद्य विनिर्मितम्
विषमं मन्दमेधसाम् ।
यत्तदेवास्ति चेदत्र प्रसिद्धैर्सस्कृतैर्वाक्यैर्विद्वज्जनमनोहरम्
यन्मया पद्यबन्धेन मल्लिषेणेन रच्यते ॥ X X
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तेनैषा कविचक्रिणा विरचिता श्रीपञ्चमी सत्कथा । २. जिनरत्नकोश, पृ० १४३.
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