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________________ १४८ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास आदि देशों, द्वारकादि नगरों, विविध वन, नंग, सरोवर आदि के प्राकृतिक वर्णन सरस रूप से दिये गये हैं। एक ओर रुक्मिणी, सत्यभामा आदि कृष्ण-पत्नियों के जीवन के उल्लेख से स्त्री-स्वभाव, तो दूसरी ओर प्रवास, यात्रादि के संचित्रण द्वारा प्राचीन पुरुषों की परदेश-प्रवास-कुशलता और युद्धादि वर्णनों में नीतिरीति-परायणता के दशन होते हैं। इसी में कहीं-कहीं वसन्त, कामकेलि आदि के द्वारा युवकों का मनोरंजन किया गया है तो कहीं-कहीं आते-जाते पक्षियों एवं अंग-स्फुरण और उसके फलाफल की सूचना शकुनशास्त्र के अनुसार दी गई है। इस तरह धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष पुरुषार्थों की सफलता दिखलाने में कवि ने अपनी कुशलता प्रकट की है। रचयिता एवं रचनाकाल-कवि ने अपना लघु परिचय प्रति सर्ग में दिया है तथा अन्त में विस्तारपूर्वक वंशावली दी है, जिससे ज्ञात होता है कि ये तपागच्छ में हीरविजय सन्तानीय शान्तिचन्द्र वाचक के शिष्य रत्नचन्द्रगणि थे। वह ग्रन्थ उन्होंने सूरत में सं० १६७४ के आश्विन मास की विजयदशमी के दिन समाप्त किया था। ___ रत्नचन्द्र गणि की छोटी-मोटी अनेक रचनाएँ थीं, यह इस काव्य में प्रतिसर्ग के समाप्तिवाक्य से ज्ञात होता है। तदनुसार भक्तामरस्तव, धर्मस्तव, ऋषभवीरस्तव, कृपारसकोष, अध्यात्मकल्पद्रुम, नैषधमहाकाव्यवृत्ति, रघुवंशकाव्यवृत्ति आदि अनेक कृतियां हैं। __नागकुमारचरित-बाईसवें कामदेव नागकुमार का चरित श्रुतपंचमी व्रत का माहात्म्य प्रकट करने के लिए जैन कवियों ने कथाबद्ध किया है। इस चरित पर महाकवि पुष्पदन्त की अपूर्व कृति 'नायकुमारचरिउ' अपभ्रंश में है पर संस्कृत में भी कई रचनाएँ निर्मित हुई हैं जिनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है१. रत्नयोगीन्द्र या रत्नाकर पाँचसर्ग समय-अज्ञात २. शिखामणि समय-अज्ञात ३. जिनसेन के शिष्य मल्लिषेण ५०० श्लोक-प्रमाण ११-१२वीं शताब्दी ४. धर्मधर या धर्मधीर ५३ पत्र, प्रत्येक में १० पक्तियाँ और प्रत्येक पंक्ति में ३२ अक्षर १. युगमुनिरसशशिवर्षे (१६७४) मासीषे विजयदशमिकादिवसे। सूरतबन्दरे महोपाध्यायश्रीरलचन्द्रगणिभिः विरचितम् ॥ त्रिसहस्रा पंचशती पुनरेकोनसप्ततिः श्लोकानाम् (३५६९)। २. जिनरत्नकोश, पृ० २०९. समय-अज्ञात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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