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________________ पौराणिक महाकाव्य १२... ही आ गये हैं। भाषा सरल और प्रसादगुण से युक्त है। क्लिष्ट एवं अप्रचलित शब्दों का प्रयोग नहीं के बराबर है । इसमें सूक्तियों और लोकोक्तियों का विशेष प्रयोग कवि ने नहीं किया है। __कवि-परिचय और रचनाकाल-ग्रन्थान्त में कवि ने प्रशस्ति दी है जिसमें उसने अपनी गुरु-परम्परा का उल्लेख किया है। इससे ज्ञात होता है कि इसके कर्ता माणिक्यचन्द्रसूरि राजगच्छीय थे। राजगच्छ में भरतेश्वरसूरि, उनके शिष्य वीरस्वामी, उनके शिष्य नेमिचन्द्रसूरि, उनके शिष्य सागरचन्द्र । सागरचन्द्र के शिष्य पार्श्वनाथचरित के रचयिता माणिक्यचन्द्रसूरि थे। ये महामात्य वस्तुपाल के समकालीन थे। उदयप्रभसूरि के शिष्य जिनभद्र ने अपनी प्रबंधावली (सं० १२९०) में माणिक्यचन्द्र और वस्तुपाल के सम्पर्क का विवरण दिया है। पार्श्वनाथचरित का रचनाकाल कवि ने इस प्रकार दिया है : . रसर्षि रवि ( १२७६) संख्यायां सभायां दोपपर्वणि । समर्थितमिदं वेलाकूले श्रीदेवकूपके ।' अर्थात् सं० १२७६ में दीपावली के दिन वेलाकूल श्रीदेवकूपक में इस काव्य की रचना हुई । इसे भिल्लमालवंशीय श्रेष्ठी देहड़ की प्रार्थना पर रचा गया था। कवि की दूसरी कृतियों में शांन्तिनाथचरित तथा काव्यप्रकाश की संकेत टीका है। . ३. पार्श्वनाथचरित: __ यह छः सर्गों का 'विनय' शब्दांकित महाकाव्य है। यह अबतक अमुद्रित है। इसका ग्रन्थ-परिमाण ४९८५ श्लोक-प्रमाण है। सर्गों के नाम वर्ण्यवस्तु के आधार पर रखे गये हैं। इसका कथानक परम्परासम्मत है जिसमें कवि ने कोई परिवर्तन-परिवर्धन नहीं किया है। भवान्तरों के वर्णन में अनेक अवान्तर कथाओं की योजना की गई है। ग्रन्थ की रचना का उद्देश्य धार्मिक स्थानों और सभाओं में श्रद्धालु श्रावकों द्वारा इसका पारायण करना और दूसरों को सुनाना रहा है। फिर भी इस पार्श्वनाथचरित का कथानक परम्परासम्मत - .: वही, प्रशस्ति. २. हेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञानमन्दिर, पाटन, हस्तलिखित प्रतियाँ, क्र. सं. १९१८ और १९६८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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