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________________ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास इसका वर्णन अन्यत्र किया जा रहा है। इसके बाद कई उल्लेखनीय कृतियाँ उपलब्ध हैं जिनमें से कुछ का परिचय यहाँ दिया जा रहा है । १. पार्श्वनाथचरित: इस काव्य में २३वें तीर्थकर पार्श्वनाथ का जीवन काव्यात्मक शैली में वर्णन किया गया है। काव्य १२ सर्गों में विभक्त है। प्रत्येक सर्ग का नाम वर्ण्यवस्तु के आधार पर किया गया है। पहले सर्ग का नाम अरविन्दमहाराजसंग्रामविजय, दूसरे का नाम स्वयंप्रभागमन, तीसरे का नाम वज्रघोषस्वर्गगमन, चतुर्थ का नाम वज्रनाभचक्रवर्तिप्रादुर्भाव, पाँचवें का नाम वज्रनाभचक्रवर्तिचक्रप्रादुर्भाव, छठे का वज्रनाभचक्रवर्तिप्रबोध, सातवे का वज्रनाभचक्रवर्तिदिग्विजय, आठवें का आनन्दराज्याभिनन्दन, नवम का दिग्देविपरिचरण, दशम का कुमारचरित, ग्यारहवें का केवलज्ञानप्रादुर्भाव और बारहवें का भगवनिर्वाणगमन है। कवि ने इसे पार्श्वनाथजिनेश्वरचरित महाकाव्य कहा है। महाकाव्य की शैली के अनुरूप प्रत्येक सर्ग की रचना अलग-अलग छन्द में की है और सर्गान्त में विविध छन्दों की योजना की है। पहले, सातवें और ग्यारहवें सों में अनुष्टुप छन्द, शेष में दूसरे छन्दों का प्रयोग किया गया है। सप्तमसर्ग में व्यूहरचना के प्रसंग में मात्राच्युतक, विन्दुच्युतक, गूढचतुर्थक, अक्षरच्युतक, अक्षरव्यत्यय, निरोष्ठ्य आदि का अनुष्टुप छन्दों में ही प्रदर्शन किया गया है। छठे सर्ग में विविध शब्दों की छटा द्रष्टव्य है। इस काव्य की भाषा माधुर्यगुणपूर्ण है। कवि का भाषा पर असाधारण अधिकार है। वह मनोरम कल्पनाओं को साकार करने में पूर्णतया समर्थ है । कवि ने भाव और भाषा को सजाने के लिए अलंकारों का प्रयोग किया है । शब्दालंकारों में अनुप्रास का प्रयोग अधिक हुआ है। अर्थालंकारों में उपमा, उत्प्रेक्षा, अर्थान्तरन्यासादि का प्रयोग स्वाभाविक रूप से किया गया है। ग्रन्थकर्ता और समय-इस काव्य के रचयिता वादिराजसूरि द्रविड़संघ के अन्तर्गत नन्दिसंघ (गच्छ ) और अरुंगल अन्वय (शाखा ) के आचार्य थे। इनकी उपाधियाँ षटतर्कषण्मुख, स्याद्वादविद्यापति और जगदेकमल्लवादी थीं। १. माणिकचन्द्र दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला, बम्बई, सं० १९७३, जिनरत्नकोश, पृ० २४६, हिन्दी अनुवाद (पं० श्रीलालकृत)-जयचन्द्र जैन, कलकत्ता, १९२२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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