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________________ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास स्थान में बक्कर आदि । मुनिसुव्रतचरित की रचना यद्यपि संस्कृत में हुई तथापि इसमें कहीं-कहीं पर प्राकृत का प्रयोग भी मिलता है ।' अलंकारों के प्रयोग में कवि की अधिक रुचि प्रतीत नहीं होती फिर भी कुछ तो स्वतः ही भाषा प्रवाह अनुप्रास का प्रयोग पद्यों में दृष्टिगोचर उत्प्रेक्षा और सन्देह का प्रयोग अधिक ११४ में आ गये हैं । शब्दालंकारों में होता है । अर्थालंकारों में उपमा, हुआ है। मुनिसुव्रतचरित के प्रत्येक सर्ग में अनुष्टुप का प्रयोग हुआ है और सर्ग के अन्त में छन्द परिवर्तित कर दिया गया है । कुल मिलाकर ग्यारह छन्दों का प्रयोग इस काव्य में हुआ है : अनुष्टुप् शार्दूलविक्रीडित, आर्या, मालिनी. उपजाति, सग्धरा, मन्दाक्रान्ता, हरिणी, शिखरिणी, इन्द्रवज्रा और वंशस्थ | ग्रन्थ ४५५२ श्लोक-प्रमाण है जो कि अष्टम सर्ग की पुष्पिका में दिया गया है। • कवि परिचय एवं रचनाकाल - इस काव्य के रचयिता वे ही विनयचन्द्रसूरि हैं जिन्होंने मल्लिनाथचरित एवं पार्श्वनाथचरित लिखा है । इसकी रचना कब की गई यह कवि ने उल्लेख नहीं किया है परन्तु यह मल्लिनाथचरित के बाद रचा गया है ऐसी सूचना एक पद्य से दी गई है। इस काव्य की रचना कवि ने पुण्यार्जन की कामना से ही की है। इनका विशेष परिचय पार्श्वनाथचरित के प्रसंग में दिया जा रहा है । अन्य कृतियों में अर्हद्दास' कविकृत मुनिसुव्रतकाव्य का वर्णन विशिष्ट महाकाव्यों के प्रसंग में किया जायगा । इसके अतिरिक्त कृष्णदासकृत मुनिसुव्रतकाव्य २३ सर्गों में है जिसका निर्माण कल्पवल्ली में सं० १६८१ में हुआ था । केशवसेन, भट्टारक सुरेन्द्रकीर्ति ( वि० सं० १७२२ - १७३३ ) तथा हरिषेणकृत मुनिसुव्रत- काव्यों के उल्लेख मिलते हैं। १. सर्ग ४. ३५८-३५९. २. सर्ग १. ७. ३. सर्ग ८. ३६४. ४. जिनरत्नकोश, पृ० ३१२. ५. वही, पृ० ३१२. ६. वही, पृ० ३१२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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