________________
जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
वि० सं० १३२९ में 'वृत्तरत्नाकर' पर वृत्ति की रचना की थी । इसमें इन्होंने आचार्य हेमचन्द्र के 'छन्दोनुशासन' की स्वोपज्ञ वृत्ति से उदाहरण लिये हैं । कहीं-कहीं 'वृत्तरत्नाकर' के टीकाकार सुल्हण से भी उदाहरण लिये हैं । सुल्हण की टीका के मूल पाठ से कहीं-कहीं अन्तर है ।
टीकाकार ने अपना परिचय इस प्रकार दिया है :
१५२
वादिश्री देवसू रेर्गणगगनविधौ बिभ्रतः शारदायाः, नाम प्रत्यक्षपूर्वं सुजयपदभृतो मङ्गलाह्वस्य सूरेः । पादद्वन्द्वार विन्देऽम्बुमधुपहिते भुङ्गमङ्ग दधानो, वृत्ति सोमोऽभिरामामकृत कृतिमतां वृत्नाकरस्य ॥ ३. खरतरगच्छीय आचार्य जिनभद्रसूरि के शिष्य मुनि क्षेमहंस ने इस पर टिप्पन की रचना की है । ये वि० १५ वीं शताब्दी में विद्यमान थे ।
४. नागपुरी तपागच्छीय हर्षकीर्तिसूरि के शिष्य अमरकीर्ति और उनके शिष्य यशः कीर्ति ने इस पर वृत्ति की रचना की है ।
५. उपाध्याय समयसुन्दरगणि ने इस पर वृत्ति की रचना वि० सं० १६९४ में की है । "
इसके अन्त में वृत्तिकार ने अपना परिचय इस प्रकार दिया है : वृत्तरत्नाकरे वृत्तिं गणिः समयसुन्दरः । षष्ठाध्यायस्य संबद्धा पूर्णीचक्रे प्रयत्नतः ॥ १ ॥ संवति विधिमुख- निधि-रस- शशिसंख्ये दीपपर्वदिवसे च । जालोरनामनगरे लुणिया- कसलार्पितस्थाने ॥ २ ॥ श्रीजिनचन्द्रसूरयः ।
श्रीमत्खरतरगच्छे
तेषां सकलचन्द्राख्यो विनेयो प्रथमोऽभवत् ॥ ३॥ तच्छिष्य समय सुन्दरः एतां वृत्तिं चकार सुगमतराम् । श्री जिनसागर सूरिप्रवरे गच्छाधिराजेऽस्मिन् ॥ ४ ॥
६. खरतरगच्छीय मेरुसुन्दरसूरि ने इस पर बालावबोध की रचना की है । मेरु सुन्दरसूरि वि० १६ वीं शताब्दी में विद्यमान थे ।
१. इस टीका ग्रंथ की एक हस्तलिखित ३३ पत्रों की प्रति अहमदाबाद के लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर में है ।
२. इसकी एक हस्तलिखित ३१ पत्रों की प्रति अहमदाबाद के लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर में है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org