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( ५ ) प्रथम सूत्र द्वारा विभिन्न खेटकों के विचार प्रकट किये गये हैं। दूसरा सूत्र-रहस्यज्ञोधिकारी (अ० १ सूत्र २)
बोधानन्द बताते हैं कि रहस्यों को जानने वाला ही विमान चलाने का अधिकारी हो सकता है। इस सूत्र की व्याख्या करते हुए यों लिखते हैं:
विमान-रचने व्योमारोहणे चलने तथा । स्तम्भने गमने चित्रगतिवेगादिनिर्णये ।। वैमानिक रहस्यार्थज्ञानसाधनमन्तरा । यतो संसिद्विनेंति सूत्रेण वर्णितम् ॥
अर्थात् जिस वैमानिक व्यक्ति को अनेक प्रकार के रहस्य, जैसे विमान बनाने, उसे आकाश में उड़ाने, चलाने तथा आकाश में ही रोकने, पुनः चलाने, चित्रविचित्र प्रकार की अनेक गतियों के चलाने के और विमान की विशेष अवस्था में विशेष गतियों का निर्णय करना जानता हो वही अधिकारी हो सकता है, दूसरा नहीं।
वृत्तिकार और भी लिखते हैं कि लल्लाचार्य आदि अनेक पुराकाल के विमानशास्त्रियों ने "रहस्यलहरी" आदि ग्रंथों में जो बताया है उसके अनुसार संक्षेप में वर्णन करता हूँ। ज्ञातव्य है कि भरद्वाज ऋषि के रचे "वैमानिक प्रकरण" से पहले कई अन्य आचार्यों ने भी विमान-विषयक ग्रंथ लिखे हैं, जैसे :नारायण और उसका लिखा ग्रंथ 'विमानचन्द्रिका'
'व्योमयानतंत्र' गर्ग
'यन्त्रकल्प वाचस्पति ,
'यानबिन्दु' चाक्रायणि ,
'व्योमयानाक' धुण्डिनाय ,
'खेटयानप्रदीपिका'। भरद्वाज जी ने इन शास्त्रों का भी भलीभांति अवलोकन तथा विचार करके "वैमानिकप्रकरण" की परिभाषा को विस्तार से लिखा है-यह सब वहाँ लिखा हुआ है। रहस्यलहरी में ३२ प्रकार के रहस्य वर्णित हैं :
एतानि द्वात्रिंशद्रहस्यानि गुरोर्मुखात् । विज्ञान विधिवत् सर्वपश्चात् कार्य समारभेत् ॥
शौनक
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